वाराणसीःअत्याधिक बारिश और मौसम के उतार-चढ़ाव से धान की फसल में रोग लगने की संभावना काफी बढ़ गई है. जिला कृषि रक्षा अधिकारी राजेश कुमार राय का कहना है कि वर्तमान में किसानों को जागरूकता की आवश्यकता है. इस मौसम में मिथ्या कण्डुआ, भूरा फुदका व गंधी बंग रोग धान की फसल के लिए बहुत घातक है. उन्होंने कहा कि यदि सही समय से इन फसलों की देखरेख की जाएगी और उचित मात्रा में दवाओं का छिड़काव होगा तो फ़सल अच्छी रहेगी.
उन्होंने बताया कि मिथ्या कडुआ एक फफूंद जनित रोग है. इस रोग की वजह से धान की बाली के दाने पीले, काले या फिर हरे रंग के पाउडर जैसे रोग के स्पोर लग जाते है. उन्होंने सलाह दी है कि इससे बचाव के लिए स्यूडोमोनास फलोरिसेंस पांच ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर 15-20 दिनों के अंतराल पर छिडकाव करना चाहिए. रोग के लक्षण दिखाई देने पर कॉपर हाइड्राक्साइड 77%, WP 1500 ग्राम अथवा पिकोसीस्टोबिन 7.05%, प्रोपिकोनाजोल 11.7%, एसपी 100 ग्राम मात्रा में 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
उन्होंने बताया कि धान में झोका रोग लगने पर पत्तियों पर आंख की आकृति के धब्बे बनते हैं जो मध्य में राख के रंग के और किनारे पर गहरे कत्थई रंग के होते है. पत्तियों के अतिरिक्त बालियों, डंठलों, शाखाओ एवं गाठों पर काले भूरे धब्बे बनते हैं. इससे बचाव के लिए नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों को इस्तेमाल करना चाहिए. इडीफेनफॉश 50%, ई०सी० 500 से 600 मिली. प्रति हेक्टेयर की दर से 750 से 1000 लीटर पानी में घोलकर अथवा कोजेब 75%, WP 1500 ग्राम 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करना चाहिए.