वाराणसी:काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भोजपुरी अध्ययन केंद्र स्थित राहुल सभागार में भोजपुरी भाषा में लिखे गए उपन्यास 'गंगा रतन विदेशी' पर विद्वानों ने चर्चा किया. भोजपुरी भाषा से लोग कैसे जुड़े और भोजपुरी किस तरह से विकसित हुई साथ ही भोजपुरी समाज के लोगों ने किस तरह के संघर्ष किये इन सारे विषयों पर चर्चा हुई. जिसमें बीएचयू के प्रोफेसर और छात्र-छात्रायें मौजूद रहे.
वाराणसी: बीएचयू के भोजपुरी अध्ययन में उपन्यास 'गंगा रतन विदेशी' की हुई चर्चा - बीएचयू के भोजपुरी अध्ययन में उपन्यास 'गंगा रतन विदेशी' की हुई चर्चा
वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भोजपुरी अध्ययन केंद्र स्थित राहुल सभागार में भोजपुरी भाषा में लिखे गए उपन्यास 'गंगा रतन विदेशी' पर विद्वानों ने चर्चा किया. इस चर्चा में बीएचयू के प्रोफेसर और छात्र-छात्राएं मौजूद रहे.
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उपन्यास 'गंगा रतन विदेशी' की भोजपुरी अध्ययन में हुई चर्चा
- 19वीं सदी में भोजपुरी के क्षेत्र में हुये विस्थापन और लोगों की पीड़ा बताई गई है.
- जिन्होंने मातृभाषा की खोज में बंगाल होते हुये मॉरीशस सहित विदेशी जगहों पर गए.
- परिचर्चा में यह बात भी सामने आई कि काशी होते हुये कोलकाता का सफर तय करने में लोगों को परेशानियां झेलनी पड़ी.
- भोजपुरी उपन्यास 'गंगा तरंग विदेशी' उपन्यासकार मृत्युंजय कुमार सिंह ने लिखी है.
- मृत्युंजय कुमार सिंह पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक हैं.
- उन्होंने हिंदी और भोजपुरी भाषा में कई उपन्यास भी लिखे हैं, 'गंगा तरंग विदेशी' का अपना महत्वपूर्ण स्थान है.
हिंदी के अत्यंत चर्चित लेखक एवं उपन्यासकार मृत्युंजय कुमार सिंह ने 'गंगा रतन विदेशी' लिखा है. उनके द्वारा भोजपुरी भाषा में लिखा गया यह उपन्यास मूल्यवान उपन्यास है. एक तो भोजपुरी भाषा में लिखा हुआ है और मॉरीशस से लेकर के साउथ अफ्रीका तक, बंगाल से लेकर के काशी होते हुये कोलकाता की यात्रा करता है और सिलीगुड़ी तक जाता है. उपन्यासकार ने अपनी जमीन से जुड़े जो साहित्यकार हैं, वह किस तरह से यहां से विस्थापित हुये उनके बारे में बहुत सारी कथायें और चर्चायें हुई हैं.
-श्री प्रकाश शुक्ल, निदेशक भोजपुरी अध्ययन केंद्र,बीएचयू