वाराणसी: पिछले दिनों मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर बनारस रेलवे स्टेशन किया गया और अब डीएलडब्ल्यू यानी डीजल रेल इंजन कारखाना का नाम भी बदल दिया गया है. डीएलडब्ल्यू का नाम बनारस रेल इंजन कारखाना किया जा चुका है. इसके लिए 27 अक्टूबर को ही अधिसूचना जारी हुई है, जिसका गजट पत्र आज जारी किए जाने की बात सामने आ रही है. हालांकि इस बारे में डीजल लोकोमोटिव वर्कशॉप के अधिकारी इस फैसले को दिल्ली से लिया गया फैसला बताकर इस संदर्भ में कोई पुख्ता जानकारी ना होने की बात कह रहे हैं.
भेजा था इन नामों का प्रस्ताव
फरवरी के महीने में डीएलडब्ल्यू प्रशासन की ओर से रेलवे बोर्ड को भेजे गए तीन नामों में पहला नाम बनारस लोकोमोटिव वर्क्स, दूसरा नाम डीजल इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव वर्क्स और तीसरा काशी विश्वनाथ लोकोमोटिव वर्क्स सुझाया गया था. जिनमें से पहले नाम बनारस लोकोमोटिव वर्क्सबयानी बनारस रेल इंजन कारखाना को मंजूरी दी गई है.
ये लिखा है गजट में
मिनिस्ट्री ऑफ रेलवे की तरफ से जारी नोटिफिकेशन में यह कहा गया है कि सर्वसाधारण के सूचनार्थ एतद् द्वारा अधिसूचित किया जाता है कि केंद्र सरकार द्वारा डीजल रेल इंजन कारखाना वाराणसी का नाम बदलकर बनारस रेल इंजन कारखाना करने का विनिश्चय किया गया है. उक्त परिवर्तन तत्काल प्रभाव से लागू होंगे.
1961 में हुई स्थापना
बता दें कि डीजल लोकोमोटिव वर्कशॉप की स्थापना 1961 अगस्त के महीने में की गई थी. जनवरी 1964 में यहां बने पहले रेल इंजन को राष्ट्र को समर्पित किया गया था. 1976 में निर्यात बाजार में प्रवेश करने के बाद पहला रेल इंजन तंजानिया को निर्यात किया गया था. लंबे समय तक रेल इंजन बनने के बाद वर्ष 2017 में 6000 हॉर्स पावर के पहले इलेक्ट्रॉनिक इंजन का निर्माण करने के बाद डीजल लोकोमोटिव वर्कशॉप में नए युग में प्रवेश किया था.
रचे कई कीर्तिमान
2019 से लगातार यहां पर इलेक्ट्रिक रेल इंजन ही बनाए जा रहे हैं और डीजल रेल इंजन का निर्माण बंद हुआ है. बता दें कि डीजल लोकोमोटिव वर्कशॉप के साथ विश्व बाजार में इसकी काफी साख बढ़ चुकी है क्योंकि यूरोपियन स्टैंडर्ड की महत्वपूर्ण संस्था यूनिफ़ से इंटरनेशनल रेलवे इंडस्ट्री स्टैंडर्ड का प्रमाण पत्र डीएलडब्ल्यू को मिला है. डीएलडब्ल्यू भारत में रेल इंजन बनाने वाली पहली उत्पादन इकाई है जिसे नवीनतम स्टैंडर्ड आईएसओ और टीएस का भी प्रमाण पत्र प्राप्त है.