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बनारस के इस मंदिर में मन्नत पूरी होने पर चढ़ाई जाती है खिचड़ी, हजारों लोग रोज ग्रहण करते हैं प्रसाद - मकर संक्रांति का त्योहार

वाराणसी के खिचड़ी बाबा मंदिर में खिचड़ी के दिन हजारों श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण (Varanasi Khichdi Baba Temple) करते हैं. यहां साल के 365 दिनों तक भक्तों को सुबह से शाम तक खिचड़ी ही प्रसाद के रूप में खिलाई जाती है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 15, 2024, 8:44 AM IST

Updated : Jan 15, 2024, 9:00 AM IST

मंदिर में मन्नत पूरी होने पर चढ़ती है खिचड़ी

वाराणसी : आज मकर संक्रांति का त्योहार बडे़ ही धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. मान्यता है कि संक्रांति के दिन खिचड़ी दान करना और खिचड़ी खाना बेहद फलदाई होता है, लेकिन आज हम आपको काशी के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां खिचड़ी को साल भर वितरण कर भूखों की भूख मिटाई जाती है और यही खिचड़ी लोगों की मनोकामना पूर्ति की भी वजह बनती है. यह मंदिर खिचड़ी बाबा के नाम से जाना जाता है. यहां पर सिर्फ खिचड़ी वाले दिन ही नहीं बल्कि साल के 365 दिन खिचड़ी ही खाई जाती है.

खिचड़ी बाबा मंदिर

मंदिर की सेवा में लगी छठवीं पीढ़ी :मंदिर के व्यवस्थापक संजय महाराज की छठवीं पीढ़ी इस मंदिर की सेवा में लगी हुई है. संजय महाराज और उनके परिवार के अन्य सदस्य सुबह 4:00 बजे ही मंदिर पहुंचकर खिचड़ी का प्रसाद बनाना शुरू कर देते हैं. एक बड़ी सी कढ़ाई में प्रतिदिन 3 कुंतल चावल और 5 किलो नमक, 1 किलो हल्दी, मसाले, 20 किलो से ज्यादा आलू, टमाटर समेत अलग-अलग सीजन की अलग-अलग सब्जियों के प्रयोग के साथ इस खिचड़ी को तैयार किया जाता है. पौष्टिक रूप से खिचड़ी को हमेशा से स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना गया है. इस वजह से यहां पर सुबह से लेकर शाम तक खिचड़ी महाप्रसाद प्रतिदिन बनता रहता है.

प्रसाद ग्रहण करते भक्त

ढाई हजार से ज्यादा भक्तों में वितरित किया जाता है प्रसाद :संजय महाराज का कहना है कि 3 कुंतल से ज्यादा चावल की खिचड़ी को रोजाना ढाई हजार से ज्यादा भक्तों में प्रतिदिन वितरित किया जाता है. सबसे खास बात यह है कि यह सिलसिला 1937 में खिचड़ी बाबा के शरीर त्यागने के साथ उनके परिवार की परंपरा के रूप में आगे बढ़ा और अब तक जारी है. संजय महाराज का कहना है कि खिचड़ी बाबा कौन थे. यह किसी को नहीं पता है, लेकिन उन्हें भगवान शंकर का बारहवां अवतार मानकर उनकी पूजा की जाती है. ऐसी कथा कही गई है कि वह पश्चिम बंगाल से वाराणसी आए और दशाश्वमेध घाट पर गुरु बृहस्पति भगवान के मंदिर के सामने गंगा घाट जाने वाले रास्ते पर ही सड़क पर निर्वस्त्र बैठा करते थे. सुबह से शाम तक वहीं पर रहते हुए खिचड़ी प्रसाद के रूप में वह भोजन तैयार करते थे, जो खुद भी खाते थे और वहां रहने वाले गरीब और असहाय लोगों को भी खिलाते थे.

प्रसाद ग्रहण करते भक्त

कढ़ाई में तैयार की जाती है खिचड़ी :किंवदंती कथाओं के अनुसार उनके द्वारा वितरित की गई खिचड़ी प्रसाद से कई लोगों के असाध्य रोग सही होने लगे. जिससे उनके खिचड़ी प्रसाद की मान्यता और बढ़ती गई और हर वर्ग के लोग इस प्रसाद को ग्रहण करने के लिए उनके पास पहुंचने लगे. इस वजह से यह परंपरा अनवरत रूप से जारी है. आज भी जो भक्त इस मंदिर में अपनी श्रद्धा रखते हुए किसी मनोकामना की इच्छा जाहिर करते हैं तो उसकी पूर्ति के बाद यहां पर खिचड़ी और अन्य चीजें दान करते हैं. भक्तों के दान पुण्य और उन्हीं के सहयोग से यहां पर यह भारी अनुष्ठान अनवरत रूप से चलता रहता है. इसके लिए सुबह से शाम तक यहां पर एक खास तरह की कढ़ाई चढ़ाई जाती है, जिसमें एक के बाद एक खिचड़ी का भोग लगातार तैयार होता ही रहता है. यहां हर वर्ग चाहे वह गरीब हो या अमीर हो बाहर से आने वाले सैलानी हों या लोकल रहने वाले लोग हर कोई यहां आकर इस प्रसाद ग्रहण करता है.

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Last Updated : Jan 15, 2024, 9:00 AM IST

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