वाराणसी : काशी में चल रहे पांच दिवसीय करपात्र प्राकट्योत्सव के अन्तिम दिन बुधवार को केदारघाट स्थित गौरी केदारेश्वर महादेव का जलाभिषेक किया गया. दुर्गाकुण्ड स्थित धर्मसंघ शिक्षा मण्डल के तत्वावधान में आयोजित करपात्र प्राकट्योत्सव में प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी परम्परानुसार धर्मसंघ पीठाधीश्वर स्वामी शंकरदेव चैतन्य ब्रम्हचारी, पं. जगजीतन पाण्डेय सहित अन्य भक्तों ने गौरी केदारेश्वर का जलाभिषेक कर परम्परा का निर्वहन किया. आपको बता दे कि हर साल करपात्र प्राकट्योत्सव के समापन पर विशाल शोभायात्रा के साथ गौरी केदारेश्वर का जलाभिषेक किया जाता था, लेकिन कोरोना के कारण बीते दो सालों से प्रतीकात्मक रूप से इसे पूर्ण किया जा रहा है.
सांची के केदार खंड में गौरी केदार सेवा का प्राचीन मंदिर है. कहा जाता है कि ये मंदिर खिचड़ी से बना था और खिचड़ी पत्थर के रूप में तब्दील हो गई. इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग का दर्शन करने से 5 देवी-देवताओं के दर्शन का फल मिलता है. देवाधीदेव महादेव, माता पार्वती, माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु और मां अन्नपूर्णा के दर्शन का फल इस मंदिर में स्थापित शिव लिंग के दर्शन से मिलता है. मान्यता यह है कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में भोलेनाथ अपनी 5 कलाओं के साथ विराजमान है, जबकि इस मंदिर में महादेव अपनी 15 कलाओं के साथ विराजमान हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने मात्र से भैरवी याचना नहीं मिलती और व्यक्ति का धरती पर पुनर्जन्म नहीं होता है.
परम्परा निर्वहन के लिए धर्मसंघ पीठाधीश्वर के नेतृत्व में प्रातःकाल 21 श्रद्धालुओं का जत्था धर्मसंघ से निकल कर पैदल ही केदार घाट पहुंचा, जहां गंगा स्नान के बाद तांबे के विशालकाय कलश में जल भरकर सभी भक्त केदार मन्दिर पहुंचे. इसके बाद सर्वप्रथम शंकरदेव चैतन्य ब्रम्हचारी जी महाराज ने सबसे पहले वैदिक मंत्रोच्चार के बीच गौरी केदारेश्वर का जलाभिषेक किया. इस दौरान बाबा का षोडशोपचार विधि से पूजन भी किया गया. उसके बाद धर्मसंघ के महामंत्री पं. जगजीतन पाण्डेय ने बाबा का जलाभिषेक किया. जिसके बाद अन्य श्रद्धालुओं ने बाबा का गंगाजल से अभिषेक किया. इसके बाद स्वामी शंकरदेव चैतन्य ब्रम्हचारी ने ब्राम्हण पूजन भी किया.
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