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वाराणसी: जानिए, क्यों मनाई जाती है देव दीपावली - कार्तिक पूर्णिमा

आज भव्य देव दीपावली का आयोजन काशी के घाटों पर किया जाएगा. कार्तिक पूर्णिमा का यह पर्व विशेष तौर पर काशी के लिए बहुत मायने रखता है, क्योंकि यह दिन भगवान भोलेनाथ को समर्पित है.

ईटीवी भारत से बात करते ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी.

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Published : Nov 12, 2019, 12:48 PM IST

वाराणसी: कार्तिक पूर्णिमा का पर्व पूरे देश में धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. वाराणसी में इस बार विशेष रौनक देखने को मिल रही है. सुबह गंगा स्नान के बाद अब शाम को देव दीपावली का आयोजन काशी के घाटों पर किया जाएगा, लेकिन इन सब के बीच यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर देव दीपावली है क्या और क्यों मनाई जाती है? देव दीपावली और कार्तिक मास की अमावस्या को पड़ने वाली दीपावली से यह क्यों अलग है. इस बारे में पूरी जानकारी ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने दी.

ईटीवी भारत से बात करते ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी.

देव दीपावली और कार्तिक पूर्णिमा को लेकर ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा का पर्व विशेष तौर पर काशी के लिए बहुत मायने रखता है, क्योंकि यह दिन भगवान भोलेनाथ को समर्पित है. अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर भगवान राम का स्वागत किया और कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का पर्व मनाया जाने लगा. वैसे ही आज के दिन देवताओं ने काशी में दीपावली का पर्व मनाया, जो भगवान शंकर को समर्पित होता है. यह दीपावली का पर्व इसके पीछे बड़ी वजह पुराणों में जो बताई गई है. त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का भगवान शंकर के हाथों वध हुआ था.

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ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि महादेव के पुत्र कार्तिक ने तारकासुर नाम के राक्षस का वध किया था, जिसके बाद उसके पुत्र कमलाक्ष, विमलाक्ष और विदुःमाली ने भगवान ब्रह्मा की कठिन तपस्या की. ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर उनको यह वरदान दिया कि इन तीनों का वध तभी संभव है जब तीनों एक साथ एक ही दिशा में एक ही समय में रहेंगे, जो संभव ही नहीं था. इस वजह से तीनों ने धरती से लेकर देवलोक तक अपना आतंक मचाना शुरू किया और देवता इससे परेशान हो गए.

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देवताओं ने भगवान शंकर से तीनों के वध करने की आराधना की, जिसके बाद भगवान शंकर ने ऐसी युति रची की एक ही वक्त में तीनों एक ही दिशा में एक ही समय पर एक साथ रहे और भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल से इनका वध किया. इसके बाद त्रिपुरासुर नाम के जतिन राक्षस अपनी गति को प्राप्त हुए और इसकी खुशी में देवताओं ने भगवान शंकर की नगरी काशी के घाटों पर पहुंचकर दीप जलाए और दीपावली का पर्व मनाया. जिसे देव दीपावली के नाम से जाना जाता है. पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि आज के दिन यदि काशी के गंगा घाटों पर जलते हुए दीप को कोई देख ही ले तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए आज का यह पर्व विशेष महत्व रखता है.

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