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कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले आज मनाई जाएगी देव दीपावली, जानें क्यों

वाराणसी में आज देव दीपावली मनाई जाएगी. इसके लिए श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर को आकर्षक ढंग से सजाया गया है. 8 नवंबर को चन्द्रग्रहण के कारण देव दीपावली का पर्व 7 नवंबर को मनाया जा रहा है.

देव दीपावली
देव दीपावली

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Published : Nov 7, 2022, 6:43 AM IST

वाराणसी: भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा तिथि अत्यन्त पावन मानी गई है. पौराणिक मान्यता है कि इस तिथि के दिन देवाधिदेव महादेवजी ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था और शिव जी के आशीर्वाद से दुर्गारूपिणी पार्वती जी ने महिषासुर का वध करने के लिए शक्ति अर्जित की थी. इसी दिन सायंकाल भगवान श्रीविष्णुजी मत्स्यावतार के रूप में अवतरित हुए थे.

कार्तिक पूर्णिमा का पुनीत पर्व 8 नवंबर को हर्षोल्लास और उमंग के साथ मनाया जाएगा. लेकिन, 8 नवंबर को चन्द्रग्रहण के कारण देव दीपावली का पर्व 7 नवंबर को मनाया जाएगा. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, कार्तिक पूर्णिमा का पर्व स्नान ध्यान इत्यादि 8 नवंबर को ही मनाना उचित होगा. ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 7 नवंबर, सोमवार को सायं 4 बजकर 17 मिनट से 8 नवंबर को सायं 14 बजकर 32 मिनट तक रहेगी. भरणी नक्षत्र 7 नवंबर की रात्रि 12 बजकर 37 मिनट से 8 नवंबर की रात 1 बजकर 39 मिनट तक रहेगा. इसके फलस्वरूप पूर्णिमा तिथि विशेष फलदायी हो गई है.

उदयातिथि में पूर्णिमा तिथि का मान होने से स्नान-दान की पूर्णिमा एवं कार्तिक पूर्णिमा का पर्व 8 नवंबर को मनाया जाएगा. इस दिन भगवान श्रीविष्णुजी एवं देवाधिदेव महादेवजी, शिवजी के पुत्र श्रीकार्तिकेय जी की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है. धार्मिक शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन किए गए दान व पुण्य का फल दस यज्ञों के फल के समान बताया गया है. कार्तिक माह के प्रथम दिन 10 अक्टूबर सोमवार से प्रारम्भ हुए धार्मिक नियम-संयम आदि का समापन आज के दिन कार्तिक पूर्णिमा 8 नवंबर को हो जाएगा. कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान का भी विधान है.

पूजा का विधान

ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात कार्तिक पूर्णिमा के व्रत का संकल्प लेना चाहिए. पूर्णिमा तिथि के दिन प्रातः काल गंगा स्नान करके देव दर्शन के पश्चात ब्राह्मण को यथाशक्ति दान करके पुण्यफल अर्जित करना चाहिए.

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आज के दिन पीपल, आंवला और तुलसी जी के वृक्षों पर जल सिंचन करके दीपक जलाकर उनका पूजन किया जाता है. इस दिन प्रतीक के स्वरूप में क्षीरसागर के दान का भी विधान है. 24 अंगुल के नवीन पात्र में गौ दूध भरकर उसमें सोने या चांदी की बनी मछली छोड़कर ब्राह्मण को विधि सहित दान देने से जीवन में सुख-सौभाग्य की प्राप्ति बताई गई है. ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि श्री सत्यनारायण भगवान की कथा पूजन का आयोजन भी आज के दिन किया जाता है. व्रत रखकर या फलाहार ग्रहण करके श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा से सुख-समृद्धि, खुशहाली का मार्ग प्रशस्त होता है. सिक्ख धर्म के संस्थापक श्री गुरुनानक देव जी का जन्मोत्सव भी श्रद्धा व उल्लास के साथ 8 नवंबर के दिन मनाया जाएगा.

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