वाराणसी: जब पूरे देश में त्योहार खत्म होते हैं, तब धर्मनगरी वाराणसी एक ऐसे त्यौहार की तैयारियों में जुट जाता है, जिसका इंतजार देश ही नहीं बल्कि दुनिया से आने वाले पर्यटकों को रहता है. यह त्यौहार कार्तिक महीने के खत्म होने के साथ ही देवताओं की दीपावली के रूप में जाना जाता है, जिसे देव दिवाली के नाम से एक अलग पहचान मिल चुकी है. वाराणसी में इस पर्व को मनाने के लिए न सिर्फ आम लोग बल्कि बड़े-बड़े वीआईपी भी पहुंचते हैं.. इस श्रेणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कई बड़े नाम भी शामिल हैं, जिन्होंने काशी की इस अद्भुत देव दीपावली का आनंद लिया है.
इस बार 7 नवंबर को यह त्यौहार मनाया जाएगा, लेकिन इन सबके बीच इस बार वाराणसी नगर निगम प्रशासन के सामने बड़ा चैलेंज है. चैलेंज इसलिए क्योंकि गंगा पहली बार साल में तीन बार बढ़ी घटी और फिर बढ़ी. वर्तमान समय में भी गंगा का जलस्तर अपने वास्तविक स्तर से काफी ऊपर है, जिसकी वजह से कई जगह घाट तक पानी में ही डूबे हुए हैं. इन सबके बीच सबसे बड़ा चैलेंज है गंगा के नीचे जाने के बाद सही समय पर गंगा घाटों पर जमा मिट्टी और सिल्ट की सफाई किया जाना, क्योंकि अस्सी घाट से लेकर गंगा महल, तुलसी घाट, सिंधिया घाट, मणिकर्णिका घाट, राजा घाट, राणा महल घाट, केदार घाट समेत दशाश्वमेध और राजेंद्र प्रसाद घाट के अलावा शीतला घाट के अधिकांश हिस्से अब तक पूरी तरह से गंदगी में डूबे हुए हैं. इसी वजह से इस बार देव दीपावली का महापर्व सकुशल कैसे संपन्न होगा यह बड़ा प्रश्न है.
दरअसल, इस बार 7 नवंबर को देव दीपावली का त्यौहार मनाया जाना सुनिश्चित किया गया है. पहले यह डेट 8 नवंबर की थी, लेकिन 8 नवंबर को चंद्र ग्रहण पड़ने की वजह से देव दीपावली का पर्व 7 तारीख को ही मनाया जाएगा. इन सब के बीच नगर निगम प्रशासन के पास बनारस के घाटों को उनके पुराने और सुंदर रूप में वापस लाने के लिए सिर्फ और सिर्फ 1 सप्ताह का समय बचा है. डाला छठ का पर्व आज तो किसी तरह बीत गया और गंदगी और मिट्टी दलदल के बीच व्रत करने वाली महिला और पुरुषों ने इस व्रत को गंगा घाट पर संपन्न कर लिया, लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जिस देव दीपावली के बल पर काशी की एक अलग पहचान बनी है. देश-विदेश से आने वाले पर्यटक और वीआईपी काशी की घाटों की सुंदरता निहारने के लिए पहुंचते हैं. अगर वही घाट साफ-सुथरे नजर नहीं आएंगे तो फिर देव दीपावली का आनंद कैसे मिलेगा.