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वाराणसी में मठ-मंदिरों को मिली जमीन पर हो रही खेती-बाड़ी - cultivation on monasteries and temples land

वाराणसी में मठ और मंदिरों को बड़ी-बड़ी जमीने दान में दी गई हैं. ऐसे में कई मठ मंदिरों में जमीन झगड़े की जड़ बनी, तो कहीं आज भी दान में मिली कई सौ साल पुरानी जमीनों को संरक्षित और सुरक्षित रखकर खेती-बाड़ी में इनका इस्तेमाल किया जा रहा है.

वाराणसी में मठ-मंदिरों को मिली जमीनों पर हो रही खेती-बाड़ी
वाराणसी में मठ-मंदिरों को मिली जमीनों पर हो रही खेती-बाड़ी

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Published : Mar 16, 2021, 11:42 AM IST

वाराणसी: देश की पवित्र भूमि हमेशा से मंदिरों और मठों के लिए जानी जाती रही है. देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थापित बड़े मंदिर और मठ अनादि काल से दान दिए जाने का बड़ा केंद्र माने जाते हैं. अपनी श्रद्धा अनुसार कोई धन दान करता है तो कोई वस्त्र कोई स्वर्ण तो कोई रजत और राजाओं के शासनकाल से मठ मंदिरों को श्रद्धा अनुसार बड़ी-बड़ी जमीनों को भी दान करने का क्रम रहा है. लेकिन समय बदलने के साथ इन जमीनों का इस्तेमाल तो बदलता ही गया, साथ ही ज्यादा धन कमाने और लालच ने मठ और मंदिरों की इन लंबी चौड़ी जमीनों पर कब्जा करना भी शुरू करवा दिया. ऐसे में मंदिरों के शहर कहे जाने वाले बनारस में भी कई मठ मंदिरों में जमीन झगड़े की जड़ बनी तो कहीं आज भी दान में मिली कई 100 साल पुरानी जमीनों को संरक्षित और सुरक्षित रखकर खेती-बाड़ी में इनका इस्तेमाल किया जा रहा है.

वाराणसी से स्पेशल रिपोर्ट
बनारस में 45 से 50 मठ-मंदिरों को मिली जमीन


वाराणसी के प्रशासनिक आंकड़ों पर यदि गौर करें तो बनारस में लगभग 45 से 50 ऐसे मठ एवं मंदिर हैं, जिनकी जमीनों को दान में मिलने के बाद इनका संरक्षण मंदिर और मठ प्रबंधन की तरफ से किया जा रहा है, लेकिन कुछ जमीने ऐसी हैं जो दान में मिली और उनपर कब्जा भी होता चला गया. जैसे कबीर मठ कि वह पवित्र भूमि जहां संत कबीर पैदा हुए. यहां स्थित तालाब और इसके आसपास की उपजाऊ भूमि धीरे-धीरे कब्जे में घिरती गई, लेकिन बहुत से ऐसे मठ मंदिर भी हैं, जिनकी कई एकड़ भूमि आज भी इन मठों मंदिरों के पास हैं.

वाराणसी में मठ-मंदिरों को मिली जमीनों पर हो रही खेती-बाड़ी
1880 से शुरू हुआ दान का सिलसिला

ऐसा ही एक अन्नपूर्णा मंदिर एवं मठ है. काशी के प्रसिद्ध अन्नपूर्णा मंदिर मठ को 1880 को दान में जमीन मिलने की शुरुआत हुई. शिवपुर क्षेत्र में शाह, परिवार समेत कई राजाओं ने जमीन के अलग-अलग टुकड़े मंदिर ट्रस्ट को दान में दिए. शुरुआत में मंदिर ट्रस्ट ने इतनी बड़ी जमीन को सुरक्षित रखने में थोड़ी सी ढिलाई की, जिसका नतीजा यह हुआ कि मंदिर के जमीन के बड़े हिस्से पर लोगों का कब्जा शुरू हो गया, लेकिन मंदिर और मठ के महंत रामेश्वरपुरी के प्रयासों से इसको खाली कराया गया.
वर्तमान समय में मंदिर की 14 बीघा जमीन में से 10 बीघा जमीन में अलग-अलग तरह की सब्जियों की खेती की जा रही है, जिसकी देखरेख के लिए चार कर्मचारियों को भी रखा गया है.
वर्तमान में 14 बीघा जमीन पर खेती

वर्तमान समय में मंदिर की 14 बीघा जमीन में से 10 बीघा जमीन में अलग-अलग तरह की सब्जियों की खेती की जा रही है, जिसकी देखरेख के लिए चार कर्मचारियों को भी रखा गया है. इस पूरी प्रॉपर्टी की व्यवस्था देखने वाले आशुतोष मिश्रा का कहना है की अन्नपूर्णा मंदिर बनारस के बड़े मंदिरों में शामिल है. प्रतिदिन हजारों लोगों को भोजन कराने के साथ ही नि:शुल्क अस्पताल और नि:शुल्क संस्कृत विद्यालय का संचालन किया जाता है, जिसमें 450 से ज्यादा बच्चे हॉस्टल में रहते हैं. यहां पर 10 बीघा जमीन में तैयार होने वाली सब्जियों को स्कूल की कैंटीन के साथ ही अन्नपूर्णा मंदिर परिसर में स्थित अन्य क्षेत्र में नि:शुल्क भोजन व्यवस्था के लिए इस जमीन पर तैयार होने वाली सब्जियों को भेजा जाता है.
काशी के प्रसिद्ध अन्नपूर्णा मंदिर मठ को 1880 को दान में जमीन मिलने की शुरुआत हुई.

जमीन के बड़े हिस्से का इस्तेमाल आज भी कृषि भूमि के रूप में किया जा रहा है. इससे किसी भी तरह की आमदनी तो नहीं होती लेकिन मंदिर में होने वाले तमाम खर्च यहां पर तैयार होने वाली खेती की वजह से कम हो जाते हैं, क्योंकि अन्नपूर्णा मंदिर मठ की तरफ से प्रतिदिन अन्य क्षेत्र में हजारों लोगों को नि:शुल्क भोजन कराया जाता है. इन सब्जियों को वहां भेज कर प्रतिदिन बड़ी बचत की जाती है. इसके अलावा 4 बीघा क्षेत्र में नि:शुल्क विद्यार्थियों के रहने की व्यवस्था, नि:शुल्क अस्पताल और संस्कृत विद्यालय का संचालन किया जा रहा है .दान में मिली जमीन को न कभी किसी को पट्टे पर दिया गया और ना अन्य किसी कमाई के लिए इस्तेमाल किया गया.

यहां पर 10 बीघा जमीन में तैयार होने वाली सब्जियों को स्कूल की कैंटीन के साथ ही अन्नपूर्णा मंदिर परिसर में स्थित अन्य क्षेत्र में नि:शुल्क भोजन व्यवस्था के लिए इस जमीन पर तैयार होने वाली सब्जियों को भेजा जाता है.
सरकारी कार्यालयों में नहीं हैं आंकड़े

तहसील के आंकड़ों में भी बनारस के मठ और मंदिरों की जमीन पर कब्जे को लेकर कोई आंकड़े मौजूद नहीं हैं. अधिकारियों का कहना है कि सदर से लेकर आठ अलग-अलग ब्लॉकों में ऐसे 50 से ज्यादा बड़े मठ मंदिर हैं, जिनकी संपत्तियां मौजूद हैं. इनमें से अधिकांश दान में मिली हुई है और अधिकांश मंदिर और मठ की तरफ से खरीदी भी गई है. खरीदी हुई जमीनों पर वह अपने हिसाब से कमर्शियल यान इस्तेमाल करते हैं, लेकिन दान में मिली जमीनों में से अधिकांश का इस्तेमाल खेतीबारी के लिए किया जाता है और यदि इन जमीनों पर कब्जा होता है तो उनकी शिकायत आने पर कार्रवाई की जाती है. शिकायत नहीं आती तो मठ मंदिर अपने स्तर पर ही उन्हें खाली कराने का प्रयास करते हैं.

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