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Corona Warrior: पिता को खोने के बाद भी नहीं हारी हिम्मत, संभाली जिम्मेदारी - सीएमओ वीबी सिंह

वाराणसी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी वीबी सिंह ने लोगों के लिए एक मिसाल पेश की है. उन्होंने अपनों को खोने के बाद भी हौसला नहीं खोया और कोरोना योद्धा (corona warrior) बने. पेश है सीएमओ से ईटीवी भारत की खास बातचीत...

मुख्य चिकित्सा अधिकारी वीबी सिंह
मुख्य चिकित्सा अधिकारी वीबी सिंह

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Published : May 30, 2021, 10:50 PM IST

वाराणसी:दर्द और व्यथा के दौर में आह की कहानियां ज्यादा हैं, लेकिन वाह के अफसाने भी कम नहीं हैं. आह से वाह तक की यह दास्तान आपके दिल को सुकून देने के साथ आपके मनोबल को भी मजबूत करेगी, क्योंकि हम इस दास्तान में आपको ऐसे कोरोना योद्धा से मिलवाएंगे जिसने अपना सर्वस्व न्योछावर कर इस जंग को जीतने के लिए हमें एक नया हौसला दिया. जी हां, जरूरी नहीं कि हर कहानी मुंबई, दिल्ली, चेन्नई जैसे महानगरों से शुरू हो. कुछ कहानियां छोटे शहरों से भी शुरू होती हैं.

ऐसी ही एक दास्तान वाराणसी की है. जहां पर वाराणसी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर वीबी सिंह ने कोरोना संक्रमित (corona warrior) होने के साथ अपने पिता को खो दिया, लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने अपना हौसला नहीं खोया, बल्कि एक मजबूत मनोबल के साथ अपने सीएमओ पद का निर्वहन किया और काशी की स्वास्थ्य व्यवस्था की कमान को संभाले रखा. यही वजह है कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वाराणसी स्वास्थ्य मॉडल की तारीफ की. ईटीवी भारत की टीम ने उनसे खास बातचीत की.

मुख्य चिकित्सा अधिकारी वीबी सिंह से बातचीत.
ट्रेस ट्रीट ट्रैक व्यवस्था को किया लागू

ईटीवी से बातचीत में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर वीबी सिंह ने बताया कि कोरोना की दूसरे लहर के बीच वाराणसी में लगातार बढ़ रहे कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन ने बखूबी हमारी मदद की. उन्होंने बताया कि लगातार पहले से ही जनपद के शहर व ग्रामीण इलाकों में दस्तक के जरिए मरीजों को जागरूक किया जा रहा था, इसके साथ ही उनकी जांच कराई जा रही थी. उसके बाद शासन से मिले निर्देश के उपरांत हमने जनपद में टेस्टिंग, ट्रैकिंग, ट्रीट व्यवस्था को लागू किया. इसमें जिला प्रशासन ने हमारी पूरी मदद की. यह मॉडल हमारे लिए मील के पत्थर के रूप में साबित हुआ. क्योंकि उसके जरिए ही हमने कोरोना की दूसरी लहर की चेन को तोड़ा. उन्होंने बताया कि संक्रमण पर काबू करने के लिए जिले में बने इंटीग्रेटेड कमांड सेंटर में दिन-रात एक छत के नीचे 400 से अधिक अधिकारी व कर्मचारी लगकर काम कर रहे थे.

सभी जगह चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराई जा रहीं थीं. टेलीमेडिसिन के जरिए एक-एक मरीज पर नजर रखी जा रही थी. उन्होंने बताया कि हर दिन कमांड सेंटर में मौजूद कर्मचारी प्रतिदिन मरीजों से बात करते थे. मरीजों को दवा पहुंचाने से लेकर टेस्ट करने तक जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग की नजर रहती थी. बेड, ऑक्सीजन की उपलब्धता, टीकाकरण, मरीजों की संख्या, दवा वितरण, मौत, स्वस्थ्य हुए लोगों के आंकड़े इत्यादि जानकारियों पर हर दिन चर्चा होती थी. इसका परिणाम यह रहा कि मई के पहले हफ्ते से ही दूसरी लहर की संक्रमण दर में गिरावट दर्ज की जाने लगी. उन्होंने बताया कि हमने एंबुलेंस के रिस्पांस टाइम को भी घटाकर 8 से 10 मिनट तक कर दिया और सभी बड़े-छोटे अस्पतालों में हेल्प डेस्क बनाई गई, जिससे एंबुलेंस से मरीजों को उतारने में मदद मिले और मरीजों को सही समय पर अस्पताल पहुंचाया जा सके. इसके साथ ही लगातार मिल रही शिकायतों के बाबत सभी अस्पताल में एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति की, जो अस्पताल की व्यवस्था को देखेगा.


हुए थे कोरोना संक्रमित, भाई और पिता को खोया

सीएमओ डॉ. वीबी सिंह ने बताया कि कोरोना महामारी के दौर में वह भी कोरोना संक्रमित हो चुके हैं. उन्हें सर्दी-जुखाम की शिकायत थी. इसके बाद उन्होंने कोरोना की जांच कराई तो उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई. उन्होंने बताया कि संक्रमित होने के बाद वे होम आइसोलेशन में थे, लेकिन उसके बावजूद भी वह फोन के माध्यम से लगातार स्वास्थ्य विभाग की कमान संभाले हुए थे. उन्होंने बताया कि कोरोना काल में उन्होंने पिता के साथ अपने छोटे भाई को भी खो दिया.

सीएमओ डॉ. वीबी सिंह के पिता राम सिंह जौनपुर में बदलापुर तहसील के रहने वाले थे. वह पेशे से वकील थे. कोरोना महामारी की जद में आने से उनकी मौत हो गई थी. इसी वर्ष उन्होंने अपने छोटे भाई कपिल देव सिंह को भी खो दिया. उन्होंने बताया कि जब उनके अपनों का साथ छूटा तो वह जरूर कमजोर हो गए, लेकिन फिर भी उन्होंने अपना मनोबल टूटने नहीं दिया. क्योंकि उनके ऊपर पूरे बनारस के स्वास्थ्य व्यवस्था की कमान थी. उन्होंने इस दौर में भी अपना उत्तरदायित्व निभाया और बनारस की स्वास्थ्य सुविधाओं को और बेहतर बनाया.


एक्टिव मामलों में आई कमी

मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि वाराणसी जनपद में हर दिन कोरोना मरीजों की संख्या घटती जा रही है. अप्रैल के पहले हफ्ते से हर रोज आकड़ा 800 से 1000 के ऊपर था, लेकिन अब वह आंकड़ा घटकर 100 से भी नीचे चला गया है. उन्होंने बताया कि 4 अप्रैल को जिले में 500 से कम कोरोना मरीज मिले थे, लेकिन उसके बाद यह आंकड़े लगातार बढ़ने लगे और वाराणसी में संक्रमण की दर 45 प्रतिशत तक बढ़ गई थी. धीरे-धीरे सभी व्यवस्थाओं को लागू करने के साथ इलाज की सुविधाएं बढ़ाई गई, जिसके बाद से हर दिन संक्रमण का ग्राफ गिरता जा रहा है और वर्तमान में यह संक्रमण एक प्रतिशत तक सीमित हो गया.


पीएम मोदी ने की तारीफ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वाराणसी मॉडल की तारीफ की. उन्होंने अहमदाबाद में एक बैठक की अध्यक्षता करते हुए गुजरात सरकार से कहा था कि वाराणसी से सभी को सीखने की जरूरत है. वाराणसी का कंटेनमेंट मॉडल देश के बाकी शहरों के लिए रोल मॉडल हैं. उन्होंने कहा कि बनारस मॉडल ने ही बनारस की जान बचा ली है. यूपी से यहां हर दिन दोपहर 1 बजे तक बाजार बंद हो जाते हैं. कर्फ्यू में जरूरी सामान वाली दुकानें खुले रखने के आदेश हैं, लेकिन वाराणसी में ऐसा नहीं है. यहां की जनता और दुकानदारों ने मिलकर यह फैसला लिया. इसके साथ ही स्वास्थ्य विभाग व नगर निगम के द्वारा जिस तरीके से कंटेनमेंट जोन को बनाया गया है, वह काबिलेतारीफ है. जनपद में हर अस्पताल के लिए एक अधिकारी को जिम्मेदारी दी गई, जिससे किसी भी प्रकार की लापरवाही न हो और मरीजों को उचित इलाज मिल सके. इसी का परिणाम है कि वाराणसी की स्थिति सुधर गई है.

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काशीवासियों को सुरक्षित रखने का प्रयास

मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि वाराणसी में कोरोना का ग्राफ बहुत कम हो गया है, लेकिन फिर भी अभी हम सबको और मेहनत करने की जरूरत है, क्योंकि कोरोना की तीसरी लहर बाकी है. उन्होंने बताया कि हमारी ओर से तीसरी लहर के लिए पूरी तैयारी की गई है और लगातार इसमें इजाफा किया जा रहा है, जिससे तीसरी लहर के प्रभाव को कम किया जा सके. उन्होंने बताया कि हमारी प्राथमिकता है कि हम काशीवासियों को इस संक्रमण से सुरक्षित रखें और हम इस प्रयास को अनवरत करते रहेंगे. उन्होंने लोगों से अपील भी की कि अभी भी हमें उतनी ही सतर्कता बरतने की जरूरत है जितना हम पहले बरत रहे थे, क्योंकि अभी भी हमें इस महामारी से जंग लड़ना है.

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