वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी, जहां हर उत्सव का एक अलग रंग देखने को मिलता है. यहां शिवरात्रि भी धूमधाम से मनाई जाती है तो गणेश पूजन के साथ माता दुर्गा का पावन पर्व नवरात्र भी श्रद्धा भाव के साथ मनाया जाता है. वाराणसी में शारदीय नवरात्र का विशेष महत्व होता है, क्योंकि यहां लगभग पांच सौ से ज्यादा पूजा पंडाल स्थापित होते हैं.
दुर्गा प्रतिमा मर्तिकारों की स्थिति पर विशेष रिपोर्ट मिनी कोलकाता के नाम से मशहूर बनारस की दुर्गा पूजा
मिनी कोलकाता के नाम से देश में मशहूर बनारस की दुर्गा पूजा अपने आप में अनोखी होती है, लेकिन इस बार बनारस की दुर्गा पूजा पर कोरोना का साया मंडरा रहा है. हालात यह है कि अगले महीने शुरू होने वाली दुर्गा पूजा से पहले प्रतिमा तैयार करने वाले कारीगर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. ना उनको अब तक कोई ऑर्डर मिला है और ना ही उन्होंने कोई प्रतिमा तैयार की है. इसके साथ ही इस बार होने वाली दुर्गा पूजा को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है.
कोरोना के चलते मूर्तिकार नहीं बना रहे प्रतिमाएं वाराणसी के पांडेय हवेली, बंगाली टोला और सोनारपुरा के इलाके में बड़ी संख्या में बंगाली परिवार निवास करते हैं. इन इलाकों में रहने वाले बंगाली कारीगरों के परिवार सैकड़ों सालों से माता दुर्गा की भव्य प्रतिमा तैयार करते आ रहे हैं. बनारस में बंगाली परिवारों में तैयार होने वाली दुर्गा प्रतिमाएं सिर्फ काशी ही नहीं बल्कि आसपास के जिले के साथ बिहार और झारखंड तक जाती हैं.
हर वर्ष पांच सौ से ज्यादा पूजा पंडाल स्थापित
हर साल लगभग पांच सौ से ज्यादा दुर्गा पूजा पंडाल में माता दुर्गा अपने पूरे परिवार के साथ विराजती हैं. लगभग 5 से 6 प्रतिमाएं एक एक पंडालों में बैठती हैं, जिसे बनाने के लिए लगभग 6 महीने पहले से ही कारीगर जुट जाते हैं. पुआल, मिट्टी, बांस, रंग, कपड़े इन सब को जुटाने में लगभग चार महीने का वक्त लगता है. इन सब को जुटाने के बाद कारीगर अप्रैल माह से ही प्रतिमाओं को तैयार करने की तैयारी शुरू करते हैं और अगस्त के अंत तक प्रतिमाओं को तैयार कर सितंबर में उसे फाइनल टच देना शुरू कर देते हैं, लेकिन इस बार हालात ऐसे हैं कि ना ही कोई प्रतिमा तैयार हुई है और ना ही कोई आर्डर अब तक मिला है.
चार पीढ़ियों से परिवार बना रहा दुर्गा प्रतिमाएं
बंगाली टोला इलाके में रहने वाले मूर्तिकार राजू दादा का कहना है कि उनका परिवार लगभग चार पीढ़ियों से दुर्गा प्रतिमाएं बना रहा है. हर साल लगभग 70 से 80 प्रतिमाएं तैयार करते हैं, जिससे लगभग 25 से ज्यादा परिवारों का पेट पलता है, लेकिन इस बार अब तक किसी भी पूजा समिति ने उन्हें प्रतिमा बनाने का ऑर्डर नहीं दिया है. फोन करने पर जवाब मिला कि गाइड लाइन पर निर्भर करता है. गाइडलाइन आएगी तब देखेंगे, लेकिन राजू दादा का कहना है कि अब हमारे लिए समय खत्म हो चुका है. अगर अब हमें आर्डर मिलेगा भी तो भी हम मूर्तियां बनाएंगे कैसे. यह बड़ा सवाल है. क्योंकि एक प्रतिमा को बनाने में लगभग तीन महीने का वक्त लग जाता है.
राजू का कहना है कि हमारे पास एक महीने से भी कम का वक्त बचा है. ऐसे में प्रतिमा तैयार करना, उसे फाइनल टच देना असंभव है. राजू दादा का कहना है ऐसा शायद पहली बार होगा जब हम मां की प्रतिमा नहीं बना पा रहे हैं, जिसकी वजह से हमारे आगे रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है. वहीं पूजा समितियों का भी कहना है कि दुर्गा पूजा या प्रतिमाओं को लेकर अब तक कोई गाइडलाइन नहीं आयी है. ऐसा माना जा रहा है है कि, गणेश पूजन नहीं हुआ और दुर्गा पूजा भी नहीं होगी. इसलिए सिर्फ परंपरा को निभाते हुए छोटी प्रतिमा बैठाकर मां की पूजा करेंगे, अब तक कोई प्रतिमा का ऑर्डर नहीं दिया है, आगे जैसा होगा वैसा समिति के लोग मिलकर फैसला लेंगे.