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जाने क्या है एल्बिनिज्म बीमारी, मनुष्य, पशु-पक्षी से लेकर पेड़-पौधे भी होते हैं प्रभावित

पूरे विश्व में 13 जून को अंतरराष्ट्रीय एल्बिनिज्म दिवस मनाया जा रहा है. इस दिवस को मनाने के पीछे का मुख्य उद्देश्य एल्बिनिज्म यानी की रंगहीनता के शिकार लोगों से विश्व में होने वाले भेदभाव को समाप्त करना है.

जाने क्या है एल्बिनिज्म बीमारी
जाने क्या है एल्बिनिज्म बीमारी

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Published : Jun 13, 2021, 1:36 PM IST

वाराणसीः आज पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय एल्बिनिज्म दिवस मनाया जा रहा है. इस दिन को मनाने की वजह एल्बिनिज्म यानी रंगहीनता के शिकार लोगों से विश्व में होने वाले भेदभाव को खत्म करना है. आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 18 दिसंबर 2015 से अंतरराष्ट्रीय एल्बिनिज्म जागरूकता दिवस मनाने की शुरूआत की थी. जिसकी थीम हर साल अलग-अलग होती है. इस बारे में ईटीवी भारत की टीम ने डॉक्टर से बातचीत की और जानना चाहा कि ये बीमारी क्या होती है?, और इसका इलाज क्या है?...

शिव प्रसाद गुप्त मण्डलीय अस्पताल के त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एम जे श्रीवास्तव ने बताया कि एल्बिनिज्म मेलेनिन की कमी की वजह से होता है. इससे प्रभावित लोगों की त्वचा पर सफेद धब्बे होते हैं. उन्होंने बताया कि हर शख्स के भीतर मेलेनिन नाम का एक पदार्थ होता है, जो त्वचा में ही मौजूद रहता है. इसी के आधार पर शरीर के रंगों का निर्धारण होता है. उन्होंने बताया कि मैलेनिन के उत्पादन में शामिल एंजाइम के अभाव से त्वचा, बाल और आंखों में भी इसका असर दिखने लगता है. ये वंशानुगत तरीके से मिलता है. इससे मनुष्य के साथ-साथ अन्य जो भी रीढ़ धारी जीव होते हैं. वो भी प्रभावित होते हैं.

जाने क्या है एल्बिनिज्म बीमारी

डॉक्टर श्रीवास्तव ने बताया कि जब माता और पिता दोनों के शरीर में एल्बी जिन होते हैं, तो उन से पैदा होने वाले संतान में इस प्रकार के बीमारी होने की संभावना होती है. ऐसी स्थिति 4 में से 1 मामले में देखी जाती है. ये मुख्य रूप से दुर्लभ स्थिति होती है. अगर भारत की बात करें तो इस बीमारी से पीड़ित लोगों की संख्या करीब एक लाख होगी. उन्होंने बताया कि ये एक अनुवांशिक बीमारी है. ये करीब 10 से अधिक वैरायटी के होते हैं. ये सिर्फ मनुष्य में नहीं बल्कि जानवरों और पौधों में भी देखी जा सकती है.

डॉक्टर ने कहा कि अगर उचित मात्रा में में लेनिन का निर्माण शरीर में नहीं हो पाता तब बच्चे की आंख और बालों का रंग हल्का हो जाता है. कभी-कभी ये बीमारी पूरे शरीर को प्रभावित करती है. कुछ मामलों में ये बच्चों के सिर्फ आंखों को प्रभावित करती है, तो कुछ मामलों में उनके बाल को और कुछ मामलों में शरीर को प्रभावित करती है. कहीं-कहीं ऐसा भी देखा जाता है कि ये बीमारी इन तीनों अंगों को प्रभावित करती है. उन्होंने बताया कि इस बीमारी से प्रभावित बच्चों में आंखें भूरी दिखने लगती हैं. कभी-कभी आंखें गुलाबी या लाल भी दिखती हैं.

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डॉक्टर ने बताया कि जिस भी बच्चे में इस बीमारी की समस्या है, उन्हें कुछ सावधानी बरतने की जरूरत है.

1- सबसे पहले ऐसे लोगों को तेज धूप से बचना चाहिए और जब भी तेज धूप में बाहर निकले भी तो अपने शरीर को मोटे कपड़े से ढक कर रखें. इससे दिक्कत नहीं होगी और कोशिश करनी चाहिए कि ज्यादा समय धूप में न बताएं.

2- ऐसे व्यक्ति को अपनी आंखों को भी विशेष रूप से सुरक्षित रखने की जरूरत है. उन्हें स्मार्टफोन, टीवी, लैपटॉप से डायरेक्ट कनेक्ट होने की जरूरत नहीं है. बल्कि उससे कुछ दूरी बना करके इन सब चीजों से कनेक्ट होने की जरूरत है, और थोड़े थोड़े समय पर ब्रेक लेते रहें. इससे उनकी आंखों पर जोर नहीं पड़ेगा और उनकी आंखें सुरक्षित रहेंगी.

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डॉक्टर ने बताया कि इस बीमारी का कोई परमानेंट इलाज नहीं है. इस बीमारी से प्रभावित होने वाले अंगों को बेहतर बनाने के लिए इलाज किया जाता है. जिसमें ज्यादातर आंख प्रभावित होती है, तो आंखों के लिए डॉक्टर के द्वारा तमाम तरीके की इलाज किए जाते हैं. जिससे एल्बम से जूझ रहे व्यक्ति की आंखें खराब न हो और उन्हें कोई दिक्कत न हो.

उन्होंने बताया कि कई बार समाज में ये देखने को मिलता है कि एल्बिनिज्म को लोग एक तरीके से छुआछूत की बीमारी समझते हैं. जो कि काफी भ्रामक स्थिति है. यही वजह है कि इस से जूझ रहे लोग अपने आपको समाज से कटा हुआ महसूस करते हैं. ऐसे में लोगों को इस भ्रम से दूर रहने की जरूरत है, क्योंकि ये बीमारी छुआछूत से नहीं होती. यह आनुवांशिक रूप से मिली बीमारी है और उस व्यक्ति के द्वारा उसके आगे आने वाली पीढ़ी में वह बीमारी ट्रांसफर हो सकती है. लेकिन उसके पास रहने से उसे स्पर्श करने से किसी अन्य व्यक्ति में यह बीमारी नहीं उत्पन्न हो सकती. ऐसे में जरूरी है कि ऐसे लोगों के साथ सामाजिक कटाव का नहीं बल्कि समरसता का व्यवहार अपनाया जाए जिससे वह भी खुद को सामान्य महसूस करें.

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