वाराणसीः आज पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय एल्बिनिज्म दिवस मनाया जा रहा है. इस दिन को मनाने की वजह एल्बिनिज्म यानी रंगहीनता के शिकार लोगों से विश्व में होने वाले भेदभाव को खत्म करना है. आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 18 दिसंबर 2015 से अंतरराष्ट्रीय एल्बिनिज्म जागरूकता दिवस मनाने की शुरूआत की थी. जिसकी थीम हर साल अलग-अलग होती है. इस बारे में ईटीवी भारत की टीम ने डॉक्टर से बातचीत की और जानना चाहा कि ये बीमारी क्या होती है?, और इसका इलाज क्या है?...
शिव प्रसाद गुप्त मण्डलीय अस्पताल के त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एम जे श्रीवास्तव ने बताया कि एल्बिनिज्म मेलेनिन की कमी की वजह से होता है. इससे प्रभावित लोगों की त्वचा पर सफेद धब्बे होते हैं. उन्होंने बताया कि हर शख्स के भीतर मेलेनिन नाम का एक पदार्थ होता है, जो त्वचा में ही मौजूद रहता है. इसी के आधार पर शरीर के रंगों का निर्धारण होता है. उन्होंने बताया कि मैलेनिन के उत्पादन में शामिल एंजाइम के अभाव से त्वचा, बाल और आंखों में भी इसका असर दिखने लगता है. ये वंशानुगत तरीके से मिलता है. इससे मनुष्य के साथ-साथ अन्य जो भी रीढ़ धारी जीव होते हैं. वो भी प्रभावित होते हैं.
डॉक्टर श्रीवास्तव ने बताया कि जब माता और पिता दोनों के शरीर में एल्बी जिन होते हैं, तो उन से पैदा होने वाले संतान में इस प्रकार के बीमारी होने की संभावना होती है. ऐसी स्थिति 4 में से 1 मामले में देखी जाती है. ये मुख्य रूप से दुर्लभ स्थिति होती है. अगर भारत की बात करें तो इस बीमारी से पीड़ित लोगों की संख्या करीब एक लाख होगी. उन्होंने बताया कि ये एक अनुवांशिक बीमारी है. ये करीब 10 से अधिक वैरायटी के होते हैं. ये सिर्फ मनुष्य में नहीं बल्कि जानवरों और पौधों में भी देखी जा सकती है.
डॉक्टर ने कहा कि अगर उचित मात्रा में में लेनिन का निर्माण शरीर में नहीं हो पाता तब बच्चे की आंख और बालों का रंग हल्का हो जाता है. कभी-कभी ये बीमारी पूरे शरीर को प्रभावित करती है. कुछ मामलों में ये बच्चों के सिर्फ आंखों को प्रभावित करती है, तो कुछ मामलों में उनके बाल को और कुछ मामलों में शरीर को प्रभावित करती है. कहीं-कहीं ऐसा भी देखा जाता है कि ये बीमारी इन तीनों अंगों को प्रभावित करती है. उन्होंने बताया कि इस बीमारी से प्रभावित बच्चों में आंखें भूरी दिखने लगती हैं. कभी-कभी आंखें गुलाबी या लाल भी दिखती हैं.
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