वाराणसी:काशीराज परिवार में एक बार फिर से विवाद सामने आया है. हालांकि यह विवाद कोई नया नहीं है, बल्कि काफी पुराना है. काशी नरेश डॉक्टर विभूति नारायण सिंह के निधन के बाद शुरू हुआ भाई बहनों का यह विवाद अब उस स्तर पर पहुंच गया है जहां भाई-बहन सीधे तो नहीं बल्कि अब कर्मचारियों के बल पर अपनी लड़ाई को आगे बढ़ा रहे हैं. एक के बाद एक मुकदमें निश्चित तौर पर काशीराज परिवार और उसके रसूख पर सवाल उठाने के लिए काफी हैं, लेकिन राजघरानों का यह विवाद कोई नया नहीं है काशी से लेकर अन्य राजघरानों में भी संपत्ति के यह विवाद परिवार में सामने आते रहे हैं, लेकिन यह जानना जरूरी है कि आखिर काशीराज परिवार का इतिहास क्या है और कौन है काशी के राजपरिवार के लोग. कैसे काशीराज परिवार के स्थापना एक राजशाही परिवार के रूप में काशी में हुई.
विवादों से जूझ रहे काशीराज परिवार का 300 साल पुराना गौरवपूर्ण इतिहास, ऐसे मिला था काशी का शासन
काशीराज परिवार का विवाद एक बार फिर से सामने आया है. इस राजशाही परिवार का इतिहास करीब 300 वर्ष से अधिक का है. चलिए जानते हैं इस बारे में.
राजा चेतसिंह का किला वर्तमान में गंगा घाट किनारे शिवाला इलाके में स्थित है. वाराणसी का चेतगंज इलाका महाराजा चेत सिंह के नाम से ही जाना जाता है. चेत सिंह के बाद 1781 से 1794 तक महीप नारायण सिंह काशी के राजा के रूप में स्थापित हुए.
हालांकि 1795 को ईस्ट इंडिया कंपनी ने शेर सिंह के भांजे उदित नारायण सिंह को काशी के महाराज के तौर पर स्थापित किया. 1795 से 1835 तक महाराजा उदित नारायण सिंह का काशी नरेश के रूप में कार्यकाल रहा. इसके बाद ईश्वरी नारायण सिंह को यह जिम्मेदारी 1835 में मिली. 1857 के गदर में ईश्वरी नारायण सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत का साथ दिया जिसकी वजह से इन्हें अंग्रेजी हुकूमत ने महाराजा बहादुर की उपाधि दी. उस वक्त आपको पता है कि महाराजा ईश्वरी को 13 अक्टूबर की सलामी अंग्रेजी हुकूमत ने दी थी.
खुश होकर अंग्रेजों ने ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह को वायसराय की लेजिसलेटिव काउंसिल का सदस्य भी मनोनीत किया था. इनके बाद महाराजा प्रभु नारायण सिंह ने काशी नरेश के रूप में पदभार ग्रहण किया. इसके बाद महाराजा आदित्य नारायण सिंह ने 1931 से 1939 तक पदभार ग्रहण किया.
सन 1700 से शुरू हुए वाराणसी के काशी राज परिवार की परंपरा 1947 तक चलती रही. 1947 में जब अंग्रेजी हुकूमत से भारत आजाद हुआ तो उसके बाद महाराजा विभूति नारायण सिंह को अंतिम काशी नरेश के रूप में अपना नाम लिखने की छूट दी गई और आजादी के बाद भी काशी समेत देश के हर हिस्से से उन्हें महाराजा काशी नरेश विभूति नारायण सिंह के नाम से ही जाना जाता रहा. स्वतंत्रता के पहले डॉक्टर विभूति नारायण सिंह अंतिम नरेश रहे.
15 अक्टूबर 1948 को राज्य भारतीय संघ में मिल जाने के बाद इनको काशी में महादेव के अवतार के रूप में पूजा जाता रहा. 25 दिसंबर 2000 को उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे अनंत नारायण सिंह कुंवर के रूप में जाने जाते हैं, जो वर्तमान गद्दी के उत्तराधिकारी भी हैं और इस परंपरा के वाहक भी हैं.
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