वाराणसी:महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद, जिनका नाम सुनने भर से ही आज भी लोगों की रगों में क्रांति का खून दौड़ने लगता है. क्रांति की अलख चंद्रशेखर सीताराम तिवारी यानि चंद्रशेखर आजाद ने जलाई थी. आज इस महान क्रांतिकारी की जयंती है, लेकिन इन सबके बीच यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि आखिर चंद्रशेखर सीताराम तिवारी, चंद्रशेखर आजाद कैसे बनें.
चंद्रशेखर सीताराम तिवारी
जालियावाला बाग हत्याकांड के बाद 1920- 21 में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन छेड़ा तो क्रांतिकारियों के गढ़ वाराणसी में भी इस आंदोलन की चिंगारी भड़क उठी. जगह-जगह क्रांतिकारियों की सभाएं और अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाने का काम होने लगा. ऐसी ही एक सभा में महज 15 साल की उम्र का एक किशोर भी मौजूद था, जिसका नाम चंद्रशेखर सीताराम तिवारी था.
'जेल है मेरा घर'
1923 में हुई इस घटना में इस प्रदर्शन के दौरान क्रांतिकारियों पर लाठीचार्ज हुआ. लाठीचार्ज का आदेश देने वाले दारोगा पर चंद्रशेखर तिवारी ने पत्थर फेंका. चंद्रशेखर का निशाना इतना जोरदार था कि अधिकारी का सिर फट गया और तत्काल चंद्रशेखर को गिरफ्तार कर उस वक्त के मजिस्ट्रेट खरे घाट पारसी के सामने पेश किया गया. जब मजिस्ट्रेट ने चंद्रशेखर से उनका नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम आजाद, मां का नाम धरती मां, पिता का नाम स्वतंत्रता और घर जेल बताया.