वाराणसी: देवी आराधना का पर्व नवरात्र वैसे तो तीन अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है, जिसमें गुप्त नवरात्र, शारदीय नवरात्र और वासंतिक नवरात्र हैं. तीनों में देवी के अलग-अलग रूपों का नौ दिनों तक आह्नान कर पूजन पाठ संपन्न किया जाता है. इन सबके बीच सबसे पहले चैत्र नवरात्र की शुरुआत मानी जाती है, जो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है. माता नौ दिनों तक घरों में विराजमान रहेंगी और भक्तों के सारे कष्टों को हर कर उन्हें स्वस्थ, स्वच्छ और बेहतर जीवन प्रदान करेंगी. इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण होता है देवी के आह्नान का तरीका और सही वक्त जब कलश की स्थापना की जाए.
जानकारी देते ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी. कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
देवी के कलश स्थापना के साथ ही चैत्र के वासंतिक नवरात्र की शुरुआत आज से हो जाएगी. 9 दिनों तक देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा होगी और भक्त मां का आशीर्वाद प्राप्त करेंगे. इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि वैसे तो देवी के कलश स्थापना के लिए सुबह सूर्य उदय के बाद का मुहूर्त सबसे उत्तम माना जाता है. यह एक ऐसा वक्त होता है जो हमेशा सनातन धर्म में सबसे उत्तम है, लेकिन कुछ लोग एक निश्चित वक्त पर कलश स्थापना करना चाहते हैं. जिसे अभिजीत मुहूर्त के नाम से जाना जाता है और यह अभिजीत मुहूर्त इस बार शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को सुबह 11:36 से 12:25 तक मान्य है, क्योंकि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि 25 मार्च को दिन में 3:51 तक रहेगी. इसलिए यह जरूरी है कि कलश स्थापना इस वक्त तक हर हाल में कर ली जाए.
ज्योतिषाचार्य पवन त्रिपाठी का कहना है कि नवरात्र 25 मार्च से शुरू होगा और 2 अप्रैल को रामनवमी का पर्व मनाया जाएगा. 3 अप्रैल को 9 दिनों तक व्रत रखने वाले लोग अपना पारण कर सकते हैं. इस बार मां जगदंबा का आगमन नौका पर और गमन हाथी पर हो रहा है जो शुभ फलदाई है.
कलश स्थापना का सही तरीका और पूजन
कलश स्थापन का सही वक्त जानने के बाद जरूरी हो जाता है कि देवी के कलश स्थापना का सही तरीका और पूजन क्या होगा? इस बारे में पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि नित्य कर्म से मुक्त होने के बाद स्नान कर भगवान गणेश का आह्नान करना चाहिए. इसके लिए स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूलज नमस्कार एवं पुष्पांजलि के साथ प्रार्थना की प्रक्रिया अपनाकर नए पंचांग से नववर्ष के राजा, मंत्री सेना अध्यक्ष व अन्य ग्रहों का श्रवण करना चाहिए.
लकड़ी के पटरे पर मातृका पूजन कर घट स्थापना करनी चाहिए. कलश में पानी भरकर पानी में गेरू घोलने के बाद नौ देवियों की आकृति या सिर्फ सिंह वाहिनी दुर्गा का चित्र या प्रतिमा इस लकड़ी के पटरे पर रखने के बाद कलश पर आम के पत्तों को रखकर इसके ऊपर नारियल रखें और पीली मिट्टी में गेहूं या जौ मिलाकर उसे मिट्टी के बर्तन या कलश के अगल-बगल फैलाकर वरुण पूजन और भगवती का आह्नान करें.
इस मंत्र का करें उच्चारण
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।