वाराणसी: सबसे पुराने और जीवंत शहर वाराणसी में पूरे विश्व से हर साल बड़ी संख्या में पर्यटकों का आना होता है. क्या देशी और क्या विदेशी, सभी को बनारस खूब भाता है. लोगों के आने की वजह से सबसे बड़ा फायदा यहां के कैब इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को मिलता है. किराए पर कार, बसें, टेंपो और कैब मालिक अपने साथ अपने से जुड़े ड्राइवर और उनके परिवार की जीविका चलाते हैं, लेकिन इन दिनों कैब कारोबार से जुड़े लोगों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. कोरोना महामारी की वजह से पर्यटक जैसे गायब ही हो गए हैं. हमेशा सैलानियों से गुलजार रहने वाला शहर वाराणसी बिल्कुल सुनसान है. इसकी वजह से हजारों की संख्या में कैब कारोबार से जुड़े लोगों के सामने रोजी-रोटी का बड़ा संकट पैदा हो गया है.
वाराणसी में भुखमरी की कगार पर पहुंचे कैब ड्राइवर. 4 महीने से बंद है कमाई
वाराणसी में टैक्सी उद्योग में छोटी-बड़ी मिलाकर लगभग 15,000 गाड़ियां रजिस्टर्ड हैं. इन गाड़ियों से एक-दो नहीं, बल्कि लगभग एक से डेढ़ लाख लोगों की जीविका चलती है. कैब मालिक, ट्रैवल एजेंट और टैक्सी ड्राइवर सहित उनके परिवारों को मिला दें, तो लगभग एक लाख से ज्यादा की संख्या में लोग इस वक्त भुखमरी के दौर से गुजर रहे हैं. लगभग 4 महीने से गाड़ियां खड़ी हैं. चक्के धूल में धंस कर खराब हो रहे हैं. यहां तक कि कई गाड़ियों के चक्के तो चोर निकालकर लेकर चले गए.
क्या कहते हैं कैब मालिक
कैब मालिकों का कहना है कि सरकार के निर्देश पर उन्होंने लगभग 2 महीने तक तो ड्राइवर को सैलरी का भुगतान किया, लेकिन हर रोज टैक्सी चलाने के बाद होने वाली कमाई ही 4 महीने से बंद है तो वह क्या कर सकते हैं. अब हालात बिगड़ रहे हैं. कैब ड्राइवर को देने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं. इस वजह से 8 से 9 हजार रुपये महीना पाने वाले टैक्सी ड्राइवर के आगे बड़ा संकट खड़ा हो गया है. ड्राइवरों का कहना है कि हालात सुधरेंगे या नहीं यह तो नहीं पता, लेकिन बिगड़ते जा रहे हैं. ड्राइवरों का कहना है कि परिवार को दो वक्त का खाना देना भी मुश्किल हो गया है.
बिना पैसे कैसे चुकाएंगे लोन
टूरिस्ट एसोसिएशन से जुड़े प्रणय रंजन सिंह का कहना है कि बनारस में सिर्फ 8000 से 9000 छोटी गाड़ियां मौजूद हैं, जबकि बस और अन्य गाड़ियों को मिला लें तो यह आंकड़ा 15,000 को पार कर जाएगा. इसके अलावा और भी बहुत सी गाड़ियां चलती हैं. जिससे कई परिवारों का पेट पलता है. वहीं परिवहन विभाग मार्च से लेकर जून तक के टैक्स की वसूली के लिए दबाव बना रहा है. बैंक वाले टैक्सी के लोन का प्रेशर बना रहे हैं. जब पैसा ही नहीं आ रहा, तो लोन कहां से चुकाएंगे और जब गाड़ी ही नहीं चल रही, तो टैक्स कहां से भरेंगे.
प्रणय रंजन का कहना है कि इन सारी चीजों से किसी को कोई सरोकार नहीं है. उन्होंने बताया कि आरटीओ ऑफिस में जाकर वह बार-बार मदद की गुहार लगा रहे हैं, बैंकों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है.
वहीं कैब ड्राइवर का कहना है कि परिवार कैसे चलेगा यह उन्हें नहीं पता. हर रोज सैलानियों को लेकर घूमने के बाद भी उनकी एक्स्ट्रा कमाई भी होती थी, वह भी बंद है. मासिक वेतन भी नहीं मिल रहा है. ऐसे में अब परिवार के आगे भुखमरी की स्थिति है.