वाराणसी: महादेव की नगरी काशी में इस बार बोल बम की गूंज नहीं सुनाई देगी. बीते साल से आस लगाए भक्तों और कारोबारियों की आस इस वर्ष भी टूटती हुई नजर आ रही है. भगवान शिव की आराधना और उपासना करने का सबसे बड़े महीने श्रावण से सभी को काफी उम्मीदें रहती हैं. कांवड़ियों को पुण्य लाभ का, महंत, पुजारियों को चढ़ावे की और कारोबारियों को कारोबार की आस बढ़ जाती है. इसके लिए वह अपने-अपने स्तर से तैयारियों में जुट जाते थे लेकिन, कोरोना की तीसरी लहर इस बार भी कांवड़ यात्रा में सबसे बड़ा रोड़ा बन गई है. इससे देवालयों, शिवालयों से लेकर बाजारों में भी भीड़ नहीं दिखाई देगी. पिछली बार की तरह इस बार भी काशी में बम बोल की गूंज सुनाई नहीं देगी. इससे एक ओर जहां करोड़ों का कारोबार प्रभावित होगा तो वहीं आस्थावानों की श्रद्धा पर ग्रहण भी लगेगा.
एक माह की कमाई से 6 माह का होता था गुजारा
सावन माह को लेकर दुकानदारों को कारोबार से काफी उम्मीदें थी. उनका मानना है कि वह इस एक माह की कमाई से 6 माह का खर्च निकाल लेते थे. लेकिन इस बार कुछ उम्मीद नहीं है. दुकानदारों ने बताया कि अन्य भी दुकानदारों ने भी अपने स्टाक भरना शुरू कर दिए थे लेकिन, ऐन मौके पर कांवड़ यात्रा स्थगित होने से उनको जोर का झटका लगा है क्योंकि पिछली बार कोरोना महामारी को देखते हुए कांवड़ यात्रा को स्थगित कर दिया गया था. इसके चलते उनको काफी नुकसान हुआ था. इस बार वह नुकसान की भरपाई करने के लिए तैयारी में जुटे ही थे कि ऐन मौके पर कांवड़ यात्रा स्थगित होने से सारी तैयारियां धरी की धरी रह गयीं.
कांवड़ यात्रा पर रोक के बाद दुकानदारों को हो रहा नुकसान. मंदिर के पुजारियों में मायूसी
सावन माह से न सिर्फ कारोबारियों के चेहरे खिल जाते थे बल्कि मंदिरों, देवालयों, शिवालयों के महंत, पुजारियों की भी खुशी का ठिकाना नहीं रहता था. लाखों की संख्या में शिवभक्त काशी आने के बाद गंगा घाट पर स्नान करने के पश्चात सीधे मंदिरों, देवालयों और शिवालयों में जल चढ़ाने के लिए निकल पड़ते थे. पूजन-पाठ करने के बाद पश्चात मंदिरों में अच्छा-खासा चढ़ावा भी चढ़ाते थे. पुजारी ने कहा कि जब से कोरोना का कहर जारी है तब मंदिरों के पुजारियों के आगे रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. काशी के मध्यम वर्गीय पुजारी भूखे जीने के लिए मजबूर हैं. उन्होंने कहा कि पिछली बार महामारी के चलते मंदिर बंद रहे, कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी गयी थी. इस बार भी कांवड़ यात्रा स्थगित कर दी गई है. इससे मंदिरों, शिवालयों, देवालयों के पुजारियों में मायूसी है. सरकार को ब्राह्मणों के जीवन के भी बारे में सोचना चाहिए.
कांवड़ियों के आने से चढ़ जाता था कारोबार
सावन माह के शुरू होने के एक महीना पहले से ही बाजार में रौनक दिखाई पड़ने लगती थी. आश्रम, धर्मशालाओं समेत भोजनालयों में हर साल कांवड़ियों की इतनी भीड़ उमड़ती रही है कि जगह कम पड़ जाती थी. श्रावण मास में लाई-चूरा, कपड़े, कुर्ता-पैजामा, साड़ी, कांवड़ियों का सामान, पूजन सामग्री, तांबे-पीतल का लोटा, बर्तन समेत कई वस्तुओं का कारोबार करोड़ों में होता था. लेकिन इस बार भी कांवड़ यात्रा स्थगित होने से सभी में मायूसी छा गयी. बाजार से जुड़े सुरेश तुलस्यान का कहना था कि सावन में हजारों परिवार ऐसे थे जो सिर्फ शिवभक्तों की सेवाभाव करने के लिए आते थे, जगह-जगह शिविर लगाकर शिवभक्तों की सेवा करते थे. इसके लिए वह पहले आकर तैयारियों में जुट जाते थे. उनका कहना है कि अगर कारोबार के आंकड़े को जोड़ा जाए तो करीब 500 करोड़ का कारोबार सावन माह में हो जाता था.
शनिवार की जगह रवि और सोमवार को बंद किया जाए बाजार
सावन माह को देखते हुए व्यपारियों ने जिला प्रशासन को पत्र लिखकर शनिवार की बंदी को खत्म करके सोमवार को करने की मांग की है. व्यापारी नेता प्रतीक गुप्ता ने कहा कि सावन माह शुरू हो रहा है सोमवार को भीड़ रहेगी.इसको देखते हुए रविवार और सोमवार को बंदी की जाए और शनिवार को बाजार को खोल दिया जाए ताकि व्यापारियों को कोई दिक्कत न हो. उन्होंने कहा कि सावन के महीने में सोमवार को वाराणसी में काफी संख्या में भक्तों का आवागमन होता है. रास्ते बन्द होने से व्यापार प्रभावित होता है.