वाराणसी: बुधवार को बुद्ध पूर्णिमा का महापर्व मनाया जा रहा है. माना जाता है कि हिन्दू पंचाग के मुताबिक वैशाख पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था. इसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है. शिव की नगरी वाराणसी में बौद्ध धर्म का भी एक बहुत बड़ा धर्मिक स्थल है है. वाराणसी शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थिति सारनाथ में मौजूद इस स्थान को मूलगंध कुटी विहार के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध वाराणसी आए थे और उन्होंने सारनाथ में अपने पांच शिष्यों को बौद्ध धर्म का पहला उपदेश दिया था. जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन के नाम से जाना जाता है.
बुद्ध पूर्णिमा विशेष: जानिए...क्या है शिव के काशी में भगवान बुद्ध का कनेक्शन - बनारस
आज बुद्ध पूर्णिमा का महापर्व मनाया जा रहा है. भगवान शिव की नगरी बनारस में भी बुद्ध पूर्णिमा का पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जा रहा है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि भोलेनाथ की नगरी काशी और भगवान बुद्ध के बीच एक बड़ा कनेक्शन है. भगवान शिव की नगरी वाराणसी और भगवान बुद्ध के बीच क्या कनेक्शन है जानिए हमारी इस रिपोर्ट में...
यहां मौजूद है भगवान बुद्ध की अस्थियां
सारनाथ में अशोक का चतुर्मुख सिहंतम्भ, भगवान बुद्ध का मंदिर, धम्मेख स्तूप, चौखंडी स्तूप, राजकीय संग्रहालय के साथ ही कई अन्य मंदिर और मूलगंध कुटी विहार भी है. सारनाथ के मूलगंज कुटी विहार मंदिर में भगवान बुद्ध की अस्थियां आज भी रखी हैं जो बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण मानी जाती है. जिसे विशेष पर्व पर हाथियों की शोभायात्रा के रूप में विशेष अनुष्ठान के साथ भक्तों के दर्शन के लिए बाहर निकाला जाता है.
ऐसे अस्तित्व में आया सारनाथ
इस पवित्र स्थान के बारे में यह भी कहा जाता है कि मोहम्मद गोरी ने सारनाथ के पूजा स्थलों को नष्ट किया था. इसके बाद पुरातत्व विभाग ने यहां पर खुदाई का काम शुरू किया, जिसके बाद बौद्ध धर्म के सारनाथ में होने के तमाम सबूत मिले. फिलहाल यह पवित्र स्थान आज भी बौद्ध धर्म मानने वाले लोगों के लिए सबसे पवित्र स्थल माना जाता है. बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा और करमापा सारनाथ में अक्सर विशेष अनुष्ठानों और ध्यान लगाने के लिए आते हैं. इसके अतिरिक्त श्रीलंका, म्यांमार समेत कई अन्य बौद्ध देशों से बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षु और बौद्ध धर्म के अनुयाई यहां पर हर साल आते हैं. बुद्ध के प्रथम उपदेश के बाद 300 वर्ष बाद तक सारनाथ का इतिहास पूरी तरह से अज्ञात बताया जाता है, इस काल का कोई अवशेष यहां पर नहीं मिला है. माना जाता है कि सारनाथ की समृद्धि और बौद्ध धर्म के विकास की शुरुआत अशोक के शासनकाल में हुई. सारनाथ में खुदाई के दौरान अशोक काल के तमाम सबूत मिलने के बाद सारनाथ अस्तित्व में आया और भगवान बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली के रूप में जाना गया.
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