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अनोखी बॉक्सिंग एकेडमी, यहां घाट पर तैयार होती है बॉक्सरों की फौज

यूपी के वाराणसी में गंगा घाट की सीढ़ियों पर अनोखी बॉक्सिंग एकेडमी चलती है. यहां न तो कोई स्पेशल कोर्ट है और न ही कोई हॉल. बॉक्सिंग प्लेयर यहां पर ताजी हवा और मां गंगा की मिट्टी में बॉक्सिंग सीखते हैं.

वाराणसी में घाट किनारे बॉक्सिंग एकेडमी
वाराणसी में घाट किनारे बॉक्सिंग एकेडमी

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Published : Dec 8, 2021, 9:00 PM IST

वाराणसी: सर्व विद्या की राजधानी कहे जाने वाला काशी पूरे विश्व में सबसे अनोखा शहर कहा जाता है. शायद यही वजह है कि ये विश्व के प्राचीनतम शहर में से एक है. इस शहर में रहने वाले लोग भी अनोखे हैं. यहां देश की सबसे अनोखी बॉक्सिंग एकेडमी चलती है. सूर्योदय के साथ ही घाटों की सीढ़ियों और प्लेटफार्म पर क्लास शुरू हो जाती है. कहते हैं कि जिसमें लगन होती है वह कहीं भी सीख जाता है, यही बात है कि यहां सिखाने वाले और सीखने वाले दोनों में ही लगन है, तभी यह अनोखी बॉक्सिंग पाठशाला चल रही है.

बॉक्सिंग में अपना भविष्य बनाने वाले युवा/युवतियां यहां पर बॉक्सिंग के दांव-पेच सीखते हैं. यहां न तो किसी प्रकार का कोई हॉल है और न कोई बॉक्सिंग रिंग है. यहां पर है तो बस ताजी हवा और मां गंगा की मिट्टी. वर्ष 2005 से यहां पर बॉक्सर को तैयार किया जा रहा है वह भी बिल्कुल फ्री.

वाराणसी में घाट किनारे बॉक्सिंग एकेडमी

मेहनत करो और बनारस व देश का नाम ऊंचा करो यही है मकसद

बॉक्सिंग प्लेयर आकाश जयसवाल ने बताया कि वह बीएचयू में पढ़ते हैं और वहीं बॉक्सिंग खेलता हूं. उन्होंने बताया कि 2016 से वह बॉक्सिंग खेल रहे हैं. यहां पर राधे सर लोगों को बॉक्सिंग सिखाते हैं. आकाश का कहना है कि आज जो कुछ भी हूं वह राधे सर की वजह से हूं. वह घाट पर फ्री में लोगों को बॉक्सिंग सिखाते हैं. बस उनका यही मकसद है कि मेहनत करो और बनारस व देश का नाम ऊंचा करो.

बॉक्सिंग प्लेयर रिंकी यादव ने बताया कि यहां पर प्राइवेट एकेडमी नहीं है, इसीलिए हम लोग यहां पर सीखते हैं. सर बच्चों को फ्री में सिखाते हैं. इनका कहना है कि वह स्टेट लेवल तक मेडल जीत चुकी हैं. रिंकी ने बताया कि अभी ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी के लिए उसका सेलेक्शन हुआ है, यह सब राधे सर की वजह से हुआ है.

गुरु से मिली प्रेरणा

राधे झा ने बताया यह पाठशाला उन्होंने अपने गुरु राकेश पांडेय से प्रेरित होकर खोली है. वाराणसी में काफी दिक्कतों से उसने ऑल इंडिया और नेशनल खेला था. इस समय मैंने देखा था कि यहां पर बहुत ही दिक्कत होती है, बच्चों को कोई सिखाता नहीं है. तब मैंने यह सोचा कि विद्या तो सिखानी चाहिए, अपने पास संजो के नहीं रखनी चाहिए. तब से मैं सुबह बच्चों को यहां उन बच्चों को सिखाता हूं, जिनके पास अच्छे बॉक्सिंग कोर्ट के लिए पैसे नहीं है, अच्छी डाइट के लिए पैसे नहीं है. उन्होंने बताया कि हमारे यहां के बहुत से प्लेयर खेलो इंडिया खेल रहे हैं, बहुत से लोगों ने स्पोर्ट्स कोटा से सरकारी नौकरी पाई है. अब तक 30 से ज्यादा प्लेयर विभिन्न प्रकार की सरकारी सेवाएं दे रही हैं.

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