वाराणसी: किताबें इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं और इन किताबों से दोस्ती करके इंसान उन बुलंदियों को हासिल कर सकता है, जिसका सपना उसने देखा है. ज्ञान अर्जन करने के साथ ही किताबें आज के बदलते समय में रोजगार का भी बड़ा जरिया बन गई है. बड़े-बड़े बुक सेलर्स-पब्लिशर्स किताबों के बल पर न सिर्फ अपना बल्कि हजारों लोगों का भविष्य संवार रहे हैं, लेकिन इस बार कोविड-19 के दौर में बुक सेलर्स और पब्लिशर्स की हालत बेहद खराब हो चुकी है. जिन किताबों के बल पर वह पूरे साल खुद के लिए और अपने कर्मचारियों के भविष्य को संवारने के लिए प्लानिंग करते थे. इस साल वह किताबें गोदामों में ही डंप पड़ी है. स्कूलों के बंद होने का खामियाजा यह हुआ कि किताबों की सेल सीधे-सीधे 50 फीसदी गिर गई है. पब्लिशर्स की हालत और भी खराब है, क्योंकि तैयार किताबें न बिक पाने की वजह से बुक सेलर्स ने इन्हें पब्लिशर्स को वापस कर दिया है. जिससे बुक सेलर्स और पब्लिशर्स दोनों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है.
व्यापार पर पड़ा गहरा असर
बनारस में विद्यार्थी केंद्र का अच्छा खासा दबदबा है. किताबों के पब्लिकेशन से लेकर बिक्री तक का काम यहां किया जाता है. हर साल दिसंबर महीने की शुरुआत से ही विद्यार्थी केंद्र में किताबों के बंडल बनाने से लेकर इनको फाइनल टच देने का काम शुरू हो जाता था. पूर्वांचल के अलग-अलग हिस्सों में किताबों के बंडल पहुंचाना और आर्डर नोट करना कुल मिलाकर यहां किसी के पास वक्त ही नहीं होता था, लेकिन इस बार कोविड-19 ने हालात ऐसे बदले की व्यापार अर्श से फर्श पर आ गया.
जब उठना था व्यापार तब आ गया वायरस
विद्यार्थी केंद्र के मैनेजर दिनेश कुमार मिश्र का कहना है कि मार्च से ही इस खतरनाक वायरस ने अपने पैर पसारने शुरू किए. स्कूल कॉलेज बंद हो गए. जिसकी वजह से पब्लिकेशन बुक सेलर्स के ऊपर बड़ा संकट खड़ा हुआ. स्कूल बंद होने की वजह से 3 महीने तो यही नहीं डिसाइड हो पाया कि बच्चे पढ़ेंगे कैसे. स्थितियां सुधरने लगी तो ऑनलाइन क्लासेस की शुरुआत की गई, लेकिन ऑनलाइन कंटेंट और ऑनलाइन सेलिंग ने हमारे कारोबार को पूरी तरह बर्बाद कर दिया. पिछले साल की तुलना में इस साल कारोबार में 50 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है.