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काशी के इस कला को मिला बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद, पत्थरों से बने शिवलिंग की दक्षिण भारत में डिमांड

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद हस्तशिल्प कलाओं के रोजगार में जान आ गई है. काशी में झांसी के पत्थरों से बने शिवलिंग की दक्षिण भारत में मांग बढ़ती जा रही है. जिससे कहा जा रहा है कि इन कारोबारियों पर बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है.

हस्तशिल्पों के लिए एक प्रमुख केंद्र
हस्तशिल्पों के लिए एक प्रमुख केंद्र

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Published : Jul 26, 2023, 9:08 PM IST

कारोबारी और कारीगर ने बतया.

वाराणसी:काशीप्राचीन काल से ही हस्तशिल्पों के लिए एक प्रमुख केंद्र है. यहां रामनगर में स्टोन कार्विंग विशेष स्थान रखता है. यहां के कारीगरण झांसी के पत्थरों को हाथों से डिजाइन देकर अलग-अलग आकार के उत्पाद बनाते हैं. ये पत्थर पायरो फ्लाइट मिनरल से बने होते हैं. अब तमाम उत्पादों के इतर पिछले 3 सालो ने यहां के कारीगरों ने झांसी के इन पत्थरों से शिवलिंग बनानी शुरू की. शुरुआती दिनों में यह शिवलिंग सीमित स्थानों तक ही सिमट कर रह गया था. लेकिन विश्वनाथ धाम बनने के बाद रामनगर में पत्थरों के उद्योग को एक नई राह मिली है. यहां का बना शिवलिंग दक्षिण के लोगों को सबसे अधिक पसंद आ रहा है.

हस्तशिल्पों का प्रमुख केंद्र वाराणसी.


विश्वनाथ कॉरिडोर से बढ़ा कारोबारःकाशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद से वाराणसी के कई उद्योगों में उछाल देखने को मिला है. जो उद्योग धंधे बंद होने के कगार पर थे, उनमें जान आ गई है. ऐसे ही वाराणसी में पत्थर के काम में भी देखने को मिला है. साल 2014 से पहले के समय में पत्थर के काम में लगे ज्यादातर लोगों ने काम छोड़ दिया था. इसके साथ ही जो लोग काम कर रहे थे, उनकी आय भी कम हो गई थी. लेकिन आज के समय में यहां मात्र 2 सालों में 15 लाख से अधिक के शिवलिंग बिक गए हैं और लाखों के ऑर्डर लगातार मिल रहे हैं. इन पत्थरों के आकृति के कारोबार को बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है.

झांसी से आते हैं पत्थर: पत्थर के कारोबारी आदर्श कुमार मौर्य ने बताया कि शिवलिंग बनाने में वह जो पत्थरों का प्रयोग करते हैं. वह झांसी से आता है. पत्थरों के नाम गांव के नाम पर रख देते हैं. पत्थर को झांसी से लाकर उसे यहां कटिंग किया जाता है. इसके बाद यहां अलग-अलग साइज व डिजाइन में पत्थरों को काटा जाता है. पत्थर पर टर्निंग कर शिवलिंग तैयार किया जाता है. इसके बाद निडिल के द्वारा उस पर शेप दिया जाता है. इसके बाद पत्थर को पॉलिश किया जाता है. इससे पत्थर में चमक आ जाती है. कारोबारी ने बताया कि यह बाकी पत्थरों के मुकाबले काफी सस्ता पड़ता है.साथ ही इस पत्थर में आसानी से कारीगरी की जा सकती है.

शिवलिंग के आकार बढ़ाने की बढ़ी डिमांड:कारोबारी ने बताया कि यह पत्थर मुलायम होता है, जिससे इसका प्रोडक्शन बढ़ जाता है. शिवलिंग के लिए पत्थरों की बिक्री पहले आधा से एक इंच की होती थी. वहीं, जब से विश्वनाथ कॉरिडोर बना है तब से इसकी बिक्री बढ़ गई है. इसके साथ ही लोगों की मांग थी कि शिवलिंग का आकार और बड़ा किया जाए. इसकी डिमांग काफी ज्यादा बढ़ गई है. इसके साथ ही शिवलिंग बनाने में काफी रोजगार भी बढ़ा है. जब मांग बढ़ी तो लोग इस काम को छोड़ चुके थे. लेकिन उसके बाद वह वापस इस काम में आ गए हैं. मौजूदा समय में लगभग 10-15 लाख से अधिक की बिक्री इसकी हो चुकी है.

कारीगरों को मिल रहा लाभ: वर्तमान समय में शिवलिंग के काम में 600 कारीगर लगे हुए हैं. उनमें से एक कारीगर ने बताया कि वह इन पत्थरों से ऐतिहासिक लोगों की मूर्तियां भी बनाते हैं. जिसमे महाराणा प्रताप, शिवाजी और रानी लक्ष्मीबाई जैसे लोगों की मूर्तियां भी तैयार की जाती हैं. इसकी खासियत यह है कि यह जालीकट होता है. जैसे उन्होंने हाथी बनाया. इसमें हाथी के अंदर कई हाथी बनाए जाते हैं. यह सारा काम निडिल के माध्यम से होता है. इसका ऑर्डर थाईलैंड, यूएसए से भी आता है. मौजूदा समय में शिवलिंग के ऑर्डर से उन्हें काफी लाभ मिल रहा है.



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