वाराणसी:उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भारी बहुमत के साथ जीत दर्ज की. इसके साथ ही इकाना स्टेडियम में सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने मंत्रिमंडल के साथ शपथ ग्रहण किया. हालांकि, इस बार मंत्रिमंडल में कई पुराने मंत्रियों को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी, जिसमें से एक नाम धर्मार्थ कार्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार डॉ. नीलकंठ तिवारी का भी रहा. नीलकंठ तिवारी भाजपा का वो नाम हैं, जिसके जरिए भाजपा पूर्वांचल में ब्राह्मणों को साध रही थी. इसके साथ ही वाराणसी की सियासत को भी अपने पाले में कर रही थी. लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि इस बार पार्टी ने डॉ. नीलकंठ तिवारी की जगह एक नए ब्राह्मण चेहरों को जगह दी.
बता दें कि वाराणसी पूर्वांचल के सियासत का बड़ा केंद्र हो गया है और हर सियासी दल यहां डेरा डालकर बनारस के साथ पूरे पूर्वांचल को जीतने की कोशिश करता हैं. भाजपा भी इसी राह पर है और इसी को देखते हुए बनारस से तीन मंत्रियों को 2017 के मंत्रिमंडल में शामिल भी किया गया. जिसमें से एक नाम डॉ. नीलकंठ तिवारी का रहा. डॉ. नीलकंठ तिवारी बनारस के पहले विधायक थे, जिसे मंत्री पद दिया गया. सरकार ने उन्हें धर्मार्थ कार्य विभाग दिया इसके साथ ही काशी विश्वनाथ धाम व अयोध्या परिक्षेत्र की जिम्मेदारी भी दी. लेकिन इस बार मंत्री जी के हाथ से कुर्सी छिटक गई और मंत्रिमंडल में एक नए ब्राह्मण चेहरे दयाशंकर मिश्र दयालु को शामिल किया गया.
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इसका एक बड़ा कारण नीलकंठ तिवारी के स्वभाव व जनता की नाराजगी को माना जा रहा है.इसको लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का भी कहना है कि जिस तरीके से चुनाव के ठीक पहले मंत्री जी का ईगो ट्रेंड किया था, जनता उनके स्वभाव से नाराज थी.चुनाव में ये दिखा भी बेहद मुश्किल से दक्षिण की सीट निकल पायी,उसका यह परिणाम रहा कि इस बार भाजपा ने उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर रखा है,उनके जगह एक नए सर्वमान्य चेहरे को तवज्जो दी है. जिसने बैक डोर से भाजपा का मजबूती से साथ दिया हैं.