वाराणसीः शनिवार 16 अप्रैल को हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाएगा. हनुमान जयंती यानी बजरंगबली का जन्मोत्सव शिव की नगरी काशी में ये उत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. लेकिन बहुत से लोग इस बात को लेकर संशय में रहते हैं कि हनुमान जयंती साल में दो बार क्यों मनाई जाती है. एक बार चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि यानी जो 16 अप्रैल को है और दूसरी कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी तिथि जो दीपावली के वक्त पड़ती है.
एक साल में दो बार हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाना क्या शास्त्र सम्मत है. इन दोनों में क्या अंतर है और क्यों 1 साल में दो बार प्रभु हनुमान का जन्म उत्सव मनाया जाता है. इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए हमने वाराणसी में ज्योतिषाचार्य और श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद के सदस्य पंडित प्रसाद दीक्षित से बातचीत की. उन्होंने इन दोनों जयंती के बारे में विस्तार से बताते हुए दोनों में अंतर को समझाया और पूजा की विधि में भी अलग-अलग तरीके अपनाए जाने की बात बताई.
ज्योतिषाचार्य पंडित प्रसाद दीक्षित ने बताया कि हनुमान जयंती का पर्व साल में दो बार मनाया जाता है. जिसमें पहली जयंती चैत्र शुक्ल पूर्णिमा और दूसरी जयंती कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी तिथि को मनाई जाती है. वास्तव में चैत्र मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को जो हनुमान जी की जयंती मनाई जाती है. उसमें खास बात ये है कि भगवान श्री राम के जन्म के पश्चात यानी चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को जब प्रभु श्री राम का जन्म हुआ, तब बह्मा जी ने सभी देवताओं को धरती पर वानर और भालू के रूप में जन्म लेकर प्रभु श्रीराम के काम को पूर्ण करने के लिए आग्रह किया था. जिसके बाद सभी देवता अलग-अलग रूप में धरती पर अवतरित हुए.
इस दौरान वायु देव वानर राज केसरी के घर माता अंजना की कोख से वायु अंश हनुमान के रूप में जन्म लिया. जिसकी वजह से चैत्र मास में हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है. वहीं कार्तिक महीने में मनाए जाने वाली हनुमान जयंती को लेकर शास्त्रों में ये बात स्पष्ट की गई है कि शिव के एकादश अवतार के रूप में बजरंगबली का जन्म उत्सव वक्त धरती पर हुआ था. तभी से हनुमान जयंती का पर्व उस दिन भी मनाया जाता है.