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इंटरनेशनल वीनस रिसर्च ग्रुप में शामिल हुए BHU के वैज्ञानिक, करेंगे इसमें शोध

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अब अंतरिक्ष तक के शोध में अपनी दखल दर्ज कराई है. शुक्र ग्रह की सतह की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे शोध में बीएचयू के वैज्ञानिक भी शामिल हैं.

बीएचयू के वैज्ञानिक
बीएचयू के वैज्ञानिक

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Published : May 31, 2022, 9:52 PM IST

वाराणसी:काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग की एक शोध टीम शुक्र ग्रह पर विभिन्न मैग्मेटिक इकाईयों (जैसे, ज्वालामुखी प्रवाह और डाइक) और विवर्तनिक इकाईयों (जैसे, प्रमुख दरार क्षेत्र) के लिए इसकी सतह का भूवैज्ञानिक मानचित्रण करने के अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान में शामिल है. इस शोध के दौरान मेंटल प्लूम (मेंटल प्लूम - पृथ्वी के अन्दर ऊष्मा के गहन संकेन्द्रण द्वारा उत्पन्न गतिविधि, जिसके बाद अत्यधिक बल के साथ लावा ऊपर की तरफ बढ़ता है) के साथ इन इकाइयों का संबंध और शुक्र ग्रह की जलवायु पर ज्वालामुखी गतिविधि के प्रभाव का आंकलन भी किया जाएगा.

बीएचयू की ये टीम वीनस की सतह का अध्ययन करने वाले अंतरराष्ट्रीय शोध समूह - इंटरनेशनल वीनस रीसर्च ग्रुप IRVG का हिस्सा है, जिसमें कनाडा, अमेरिका, रूस और मोरक्को की भी वैज्ञानिक टीमें शामिल हैं.

अंतरिक्ष तक के शोध में छात्राएं

आई.वी.आर.जी. का नेतृत्व डॉ. रिचर्ड अर्न्स्ट (टॉम्स्क स्टेट यूनिवर्सिटी, रूस) और सह-नेतृत्व डॉ. हाफिदा एल. बिलाली (कार्लटन यूनिवर्सिटी, कनाडा) और डॉ. जेम्स हेड (ब्राउन यूनिवर्सिटी, अमेरिका) कर रहे हैं. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की वैज्ञानिक टीम का समन्वय प्रो. राजेश कुमार श्रीवास्तव द्वारा प्रदान किया जा रहा है. जबकि वैज्ञानिक मार्गदर्शन डॉ. रिचर्ड अर्न्स्ट और डॉ. एल बिलाली द्वारा किया जा रहा है.

बीएचयू टीम के अन्य सदस्यों के रूप में डॉ. अमिय कुमार सामल (सहायक प्रोफेसर) और दो पी.एच.डी. छात्रायें हर्षिता सिंह और ट्विंकल चढ्डा भी शामिल हैं. भारत से यह एकमात्र टीम ,है जो इस तरह के अत्यंत आधुनिक शोध में शामिल है. बीएचयू की टीम शुक्र ग्रह पर दर्ज मैग्मेटिक/ज्वालामुखी गतिविधियों की पहचान करने में मदद करेगी, जो महत्वपूर्ण है क्योंकि शुक्र आकार और आंतरिक संरचना में पृथ्वी की तरह है, लेकिन इसमें कई अंतर भी है.

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इसमें प्रमुख अंतर है

(i) शुक्र पर कोई प्लेट विवर्तनिक गतिविधि नहीं है (ii) वायुमण्डल में 96 प्रतिशत कार्बन डाई आक्साइड है, जो पृथ्वी के वायुमण्डल से 90 गुना सघन है, और (iii) सतह का तापमान 450 डिग्री सेल्सियस है, इसलिए शुक्र ग्रह पर जल इकाइयों का अभाव है. जिसका फलस्वरूप, कोई क्षरण नहीं हुआ है. कुछ समानताओं में ज्वालामुखी, डाइक के गुच्छों, ज्वालामुखी प्रवाह, शामिल हैं. ये सभी प्लूम से संबंधित हो सकते हैं, जैसा कि पृथ्वी से भी दर्ज किया गया है. बी.एच.यू. टीम के शोध की आने वाले दशक में शुक्र की खोज के लिए नियोजित मिशनों के के लिए भी प्रासंगिकता है.

कहा जा कहा है कि नासा के VERITAS और DAVINCI यूरोप के EnVision रूस का वेनेरा-डी. भारत का शुक्रयान-एक. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की टीम द्वारा किया गया शोध इन सभी शुक्र ग्रह अभियानों के लिए तय वैज्ञानिक लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है. साथ ही संभावित रूप से प्रत्यक्ष मिशन भागीदारी का कारण बन सकता है.

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