वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के मॉलिक्यूलर बायोलॉजी यूनिट के रिसर्च ग्रुप ने जीका वायरस एन एस-1 प्रोटीन की खोज का दावा किया है. जीका वायरस के मस्तिक संक्रमण (ज्वर) में अहम भूमिका निभाता है. डॉक्टरों ने इसके प्रोटीन की खोज कर अत्यंत महत्वपूर्ण शोध कार्य किया है, जिसमें अहम भूमिका प्रख्यात वायरोलॉजिस्ट प्रोफेसर सुनीत कुमार सिंह निभायी है. दुनिया में करीब 86 देश खतरनाक जीका वायरस के चपेट में हैं. इससे बुजुर्ग, गर्भ में पल रहे शिशु को सर्वाधिक प्रभावित करता है. बीएचयू में हुए इस शोध से कहीं न कहीं वैज्ञानिकों और चिकित्सकों को नई राह दिखाई दे रही है.
BHU के डॉक्टर्स ने किया 'जीका वायरस' प्रोटीन खोजने का दावा
उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित बीएचयू के इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के मॉलिक्यूलर बायोलॉजी यूनिट के रिसर्च ग्रुप ने जीका वायरस एनएस-1 प्रोटीन की खोज का दावा किया है. इस पर शोध कर रहे डॉक्टर दावा कर रहे हैं कि जीका वायरस एडीज मच्छरों से फैलता है. यह वायरस सीधे नवजात शिशु को अपना शिकार बनाता है.
जीका वायरस एक ऐसा वायरस है, जो एडीज मच्छरों से फैलता है. यह वही मच्छर हैं, जिसके काटने से जिसके काटने से डेंगू, चिकनगुनिया और पीत ज्वर जैसी बीमारियां होती हैं. जीका वायरस संक्रमण से शिशुओं में माइक्रोसेफली या वयस्कों में गुइलाइन बार्रे सिंड्रोम होता है. माइक्रोसेफली एक ऐसी स्थिति है, जहां नवजात शिशुओं में मस्तिष्क का आकार असामान्य या अविकसित होता है. जीका वायरस का इन्क्यूबेशन पीरियड 2-7 दिनों का होता है. 2015 में, ब्राजील, उत्तरी अमेरिका, प्रशांत और दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रमुख जीका वायरस का प्रकोप देखा गया. बताया जा रहा है कि करीबन 1.5 मिलियन लोग जीका वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, जिसमें करीब 3,500 से अधिक शिशुओं में माइक्रोसेफली के मामले दर्ज किए गए हैं. यह वायरस सीधे नवजात शिशु को अपना शिकार बनाता है. अगर बच्चा इस वायरस से प्रभावित हो जाए तो ताउम्र उस बच्चे की विशेष देखभाल करनी पड़ती है. इसके प्रभाव से बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग हो सकता.
भारत में मिले 157 जीका वायरस संक्रमित
भारत में साल 2018 में 157 जीका वायरस संक्रमण के मामले सामने आए थे. जीका वायरस के खिलाफ कोई निश्चित एंटीवायरल नहीं है और केवल रोगसूचक उपचार का पालन किया जाता है. जीका वायरस के वैक्सीन का निर्माण अभी भी परीक्षण के विभिन्न स्तरों पर चल रहा है.
प्रोफेसर सुनीत कुमार सिंह ने बताया कि मस्तिष्क को शरीर के अन्य भागों के रुधिर संचरण तंत्र से अलग करने के लिये एक अवरोध रूपी लेयर होती है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में ब्लड ब्रेन बैरियर कहा जाता है. ब्लड ब्रेन बैरियर विभिन्न पदार्थों एवं शरीर की इम्यून सेल्स के मस्तिष्क में प्रवेश को नियंत्रित करता है, क्योंकि इन पदार्थों का मष्तिष्क में अनियंत्रित प्रवेश मष्तिष्क के लिए घातक सिद्ध हो सकता है. ब्लड ब्रेन बैरियर मस्तिष्क एंडोथेलियल कोशिकाओं द्वारा बनाई जाती हैं और ये कोशिकाएं टाइट-जंक्शन प्रोटीन और अधेरेन्स जंक्शन प्रोटीन द्वारा एक साथ जुड़ी होती हैं. यदि टाइट-जंक्शन प्रोटीन और अधेरेन्स जंक्शन प्रोटीन कम हो जाए तो ब्लड ब्रेन बैरियर कमजोर हो जाती हैं. जो कि मष्तिष्क की कोशिकाओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है. जीका वायरस के संक्रमण के बाद संक्रमित कोशिकाएं एक वायरल प्रोटीन, एन एस-1 का स्राव करती हैं, जो रोगियों में रोग की गंभीरता के साथ सीधा सम्बन्ध रखता है.
यह है रिसर्च
प्रो. सुनीत कुमार सिंह ने अपनी रिसर्च में रिपोर्ट में दावा किया है कि जीका वायरस का एनएस-1 ब्लड ब्रेन बैरियर को कमजोर कर देता है जो की शिशुओं के मष्तिष्क में जीका वायरस के प्रवेश में मददगार सिद्ध होता है. वायरस नवजात में माइक्रोसेफली का कारण बन सकता है. यह शोध जुलाई, 2020 के महीने में एक अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल, Biochimi में प्रकाशित हुआ है. उन्होंने बताया कि जीका वायरस के एन एस-1 प्रोटीन की वजह से टाइट-जंक्शन प्रोटीन और अधेरेन्स जंक्शन प्रोटीन की अभिव्यक्ति कम हो जाती है और मष्तिष्क में बहुत से इंफ्लेमेटरी तत्व क्रियाशील हो जाते हैं, जो कि ब्लड ब्रेन बैरियर को तोड़ने में मदद करती है. उन्होंने यह भी बताया कि इस शोध से जीका वायरस कि मॉलिक्यूलर पैथोजेनेसिस एवं जीका वायरस के खिलाफ औषधियों के निर्माण में अत्यंत सहायता मिलेगी.