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कोरोना की दवा बनेगा गंगा का पानी, प्रोफेसर ने सरकार से मांगी ट्रायल की इजाजत

वाराणसी में बीएचयू के प्रो. विजयनाथ मिश्र ने दावा किया है कि गंगा नदी के पानी से कोरोना वायरस के इलाज के लिए दवा बनाई जा सकती है. इसके लिए उन्होंने भारत सरकार को पत्र लिखकर गंगा के पानी का क्लीनिकल टेस्ट कराने की मांग भी की है.

गंगा के पानी का क्लीनिकल ट्रायल.
गंगा के पानी का क्लीनिकल ट्रायल.

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Published : Jun 8, 2020, 8:35 PM IST

वाराणसी: दिसंबर 2019 से शुरू हुआ कोरोना वायरस का आतंक खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. भारत समेत पूरा विश्व इन दिनों कोरोना वायरस की चपेट में है. इस वायरस के खात्मे के लिए दवाइयां बनाई जा रही हैं, जिसके लिए तरह-तरह के शोध किए जा रहे हैं. वहीं गंगा नदी के पानी से कोरोना वायरस के इलाज की बात भी कही जा रही है.

जानकारी देते प्रोफेसर विजयनाथ मिश्र.

वाराणसी के बीएचयू के एक प्रोफेसर ने भारत सरकार और आईसीएमआर को पत्र लिखकर गंगा के पानी का शोध कर कोरोना वायरस के इलाज के लिए दवा बनाने की बात कही थी. इसे लेकर सरकार की तरफ से अब तक कोई फैसला नहीं आया है. हालांकि इस संदर्भ में बीएचयू के पांच चिकित्सकों ने क्लिनिकल रिसर्च किया है और रिसर्च पेपर पब्लिश भी करने की तैयारी है, जिसके लिए कुछ दिन का इंतजार करने की बात कही जा रही है.

तैयार हो रहा है रिसर्च पेपर
बीएचयू सर सुन्दरलाल अस्पताल के पूर्व चिकित्साधीक्षक और न्यूरोलॉजिस्ट प्रो. विजयनाथ मिश्र का कहना है कि गंगा जल कोरोना वायरस के इलाज में कारगर साबित हो रहा है. उन्होंने बताया कि पूरे देश में मरीजों की रिकवरी रेट 49 प्रतिशत के आस-पास है, लेकिन गंगा किनारे बसे हुए शहरों का रिकवरी रेट 59 से 60 प्रतिशत है.

गोमुख से निकलकर गंगासागर तक 2,550 किलोमीटर की यात्रा करने वाली गंगा अपने किनारे बसे शहरों को केवल जल की ही आपूर्ति नहीं करती, बल्कि उन्हें संरक्षित भी करती है. हरिद्वार में 87 केस मिले लेकिन मौत का एक भी मामला नहीं है. कानपुर में 466 केस मिले जबकि मौत 13 हुईं. प्रयागराज में 117 केस, जबकि मौत केवल 3 की हुई. वाराणसी में 219 केस मिले, जबकि मौत 5 की हुई. पटना में 268 केस मिले, जिसमें केवल दो की मौत हुई. बता दें कि यूपी में रिकवरी रेट 59 है तो वाराणसी में रिकवरी रेट 61 प्रतिशत है. इससे साबित होता है कि कोरोना वायरस पर गंगा के जल का कोई न कोई सकारात्मक प्रभाव जरूर है. उन्होंने बताया कि इसके लिए एक टीम ने रिसर्च किया है और रिसर्च पेपर पब्लिकेशन में जा भी चुका है. कुछ दिन के इंतजार के बाद यह सारी चीजें सामने आएंगी.

आयुष मंत्रालय कराए क्लीनिकल ट्रायल
प्रो. विजयनाथ का कहना है कि बात ट्रीटमेंट की करें तो गंगाजल के फेजेस का एक्सट्रेक्शन करना पड़ेगा, जिसका अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके लिए आईसीएमआर और आयुष मंत्रालय दोनों को अनुमति देनी चाहिए. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग कि की आईसीएमआर और आयुष दोनों मंत्रालय को आदेश दें कि जब इतना अच्छा क्लिनिकल स्टेब्लिशमेंट और क्लीनिकल डाटा उपलब्ध है तो गंगा फेज थेरेपी पर ट्रायल क्यों न किया जाए.

अमृत है गंगाजल लेकिन...
प्रो. बीडी त्रिपाठी का कहना है कि यह सत्य है कि जब गंगा हिमालय से होते हुए बहुत से औषधीय गुणों के साथ मैदानी इलाकों में आती है, तो वह अमृत के रूप में जानी जाती है. गंगा जल आज से नहीं अनादि काल से अमृत माना जाता है, लेकिन यह जानना बेहद जरूरी है कि गंगा के पानी में मौजूद बैक्टीरियोफाज जो खुद एक वायरस है, इसके द्वारा बैक्टीरिया को खत्म करने की बात तो की जा सकती है, लेकिन ऐसा कोई क्लीनिकल ट्रायल अब तक नहीं है कि एक वायरस के द्वारा दूसरे वायरस को खत्म किया जा सके, क्योंकि कोरोना एक वायरस है ना कि बैक्टीरिया. इसलिए हमें यह समझना होगा कि क्या गंगा का जो पानी अलग-अलग इलाकों से होता हुआ आ रहा है. उनमें किस इलाके में किस स्थान पर बैक्टीरियोफाज की मात्रा ज्यादा है और कहां कम, इसको लेकर रिसर्च करने की जरूरत है. बिना रिसर्च के यह कहना कि गंगा के पानी से कोरोना का इलाज संभव है, यह बिल्कुल ही गलत होगा.

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