वाराणसीः धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी की जनता ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि बाबा विश्वनाथ के भक्त सिर्फ राष्ट्र और संस्कृति के ही साथ खड़े हैं, क्योंकि जो इन दोनों बातों के साथ खड़ा रहेगा वो विकास के काम भी कर सकेगा. जिसे इन दोनों मुद्दों से मतलब नहीं वह एक पक्षीय कार्रवाई करेगा और काशी की परंपरा का ध्वजवाहक कभी नहीं बन सकेगा. काशी की तो परंपरा ही यही है कि पहले बाबा के सामने सिर झुकाओ और परिवार के लिए कमाओ. काशी के लोगों ने भाजपा को नगर निगम में मौका देकर एक बार फिर शहर की सरकार भाजपा के हाथों में सौंप दी है.
यूं तो काशी है ही अल्हड़ों का शहर. ऊपर से जब बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद हो तो भला कौन ही अपनी परंपराओं से अछूता रहेगा. फिर जो काशी की परंपरा को नहीं निभाना जानता वो काशी का कैसे होकर रहेगा. यही वजह है कि काशी अपने मेयर का चुनाव ठीक ढंग से सोचसमझकर करती है. वाराणसी में नए मेयर के आगमन ने इतिहास को दोहरा दिया है.
लगातार भाजपा के हाथों में ही रही है निगम की कुर्सी
वाराणसी नगर निमग के मेयर की कुर्सी भाजपा के ही पास रही है. यहां पर पहली बार साल 1995 में नगर निगम का चुनाव हुआ था. इस पहले चुनाव में ही भाजपा ने बाजी मारते हुए जीत हासिल की थी. भाजपा ने सरोज सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया था. इसके बाद साल 2000 में चुनाव हुआ. इस बार भी नतीजा वही रहा. भाजपा की तरफ से मैदान में उतरे अमरनाथ यादव ने जीत हासिल की. साल 2006 में कौशलेंद्र सिंह पटेल, साल 2012 में राम गोपाल मोहाले और साल 2017 में मृदुला जायसवाल ने भाजपा की तरफ से जीत हासिल की.
काशी ने नगर निगम की सत्ता राष्ट्रवादियों के हाथ सौंपी
वाराणसी के राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि काशी के लोगों को सबसे अधिक उनकी परंपरा प्रिय है. काशी के लोग खुद को बाबा विश्वनाथ का सेवक मानते हैं. फिर वो चाहे कितना बड़ा नेता ही क्यों न हो. ऐसे में यहां की राजनीति भी आस्था में डूबी होती है. काशी के लोगों को राष्ट्र के लिए काम करने वाली पार्टी के साथ ही काशी की परंपरा का निर्वहन करने वाली सरकार चाहिए. जो सभी तरह के लोगों को एकसाथ लेकर चल सके. जो बाबा विश्वनाथ को भी माने और जो भारत को गर्व कराने वाले कार्य करे. यहां के लोग भाजपा को इसका विकल्प मानते हैं.