वाराणसी: 'दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल'. अहिंसा के बल पर अंग्रेजों को भारत से भागने पर मजबूर कर देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 2 अक्टूबर को 151वीं जयंती मनाई जाएगी. बापू आज भले हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी बातें उनके सिद्धांत और उनके दिखाए रास्ते पर चलकर देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया आगे बढ़ रही है. ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि उनकी उन स्मृतियों को हम आप तक पहुंचाएं, जिनसे बाबू का विशेष लगाव था. बापू से जुड़ी ऐसी ही एक स्मृति वाराणसी में भारत माता मंदिर के रूप में जानी जाती है. यह वह पवित्र स्थान है, जो बनकर तैयार तो 1924 में हुआ, लेकिन इसका उद्घाटन 25 अक्टूबर 1936 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हाथों हुआ.
वाराणसी के चंदवा सब्जी मंडी इलाके में स्थित यह मंदिर देशभक्त और राष्ट्रवादी लोगों के लिए बड़ा केंद्र है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस मंदिर में न कोई प्रतिमा है और न कोई तस्वीर. यहां पर आजादी के पहले का वह अखंड भारत मौजूद है, जिसमें अफगानिस्तान से लेकर पाकिस्तान तक सब समाया है. सफेद मकराना मार्बल पर पहाड़ की ऊंचाई, समुद्र की गहराई और अलग-अलग राज्यों को इसमें खूबसूरती से उकेरा गया है, जिसे देखकर हर कोई नतमस्तक हो जाता है.
शिव प्रसाद गुप्त ने तैयार की मंदिर के निर्माण की रूपरेखा
राष्ट्र रत्न शिव प्रसाद गुप्त ने उस वक्त इस मंदिर के निर्माण की रूपरेखा तैयार की और महात्मा गांधी से आदेश लेने के बाद इस मंदिर का निर्माण शुरू किया. साल 1924 में मंदिर बनकर तैयार हुआ और 12 सालों बाद महात्मा गांधी ने इस मंदिर का अपने हाथों से उद्घाटन किया. उस वक्त की तस्वीरों से लेकर इस मंदिर में लगे शिलापट्ट तक पर बापू की मौजूदगी का उल्लेख मिलता है. उस वक्त की तस्वीरों में मंदिर के मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करते बापू की तस्वीर, राष्ट्र रत्न शिव प्रसाद गुप्त के साथ उस वक्त के कई महान नेता भी यहां मौजूद थे. जिस समय ट्रेन और अन्य साधनों की कमी थी उस वक्त भी इस मंदिर के उद्घाटन में 25000 से ज्यादा लोगों की भीड़ देश भर से जुटी थी.