वाराणसी:बुधवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भारत कला भवन में एक अनूठी पहल से 17वीं से लेकर 18वीं सदी तक के लगभग 50 बटुवों की प्रदर्शनी लगाई गई. प्रदर्शनी में बेशकीमती थैलियों का प्रदर्शन किया गया जिन्हें उस दौर के नामचीन कारीगरों ने हाथों से खूबसूरती की मिसाल बनाया और पीढ़ी दर पीढ़ी ये सिलसिला आज तक चलता रहा.
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भारत कला भवन में लगी प्रदर्शनी
नवाब वाजिद अली शाह का बटुआ आकर्षण का केंद्र रहा है. नवाब वाजिद अली शाह का (1822 से1887) जरदोजी वाला किमखाब ई बटुआ, जो कभी काशी के मूर्धन्य विद्वान पंडित कुबेरनाथ शुकुल ने भारत कला भवन को भेंट किया था. आज शुकुल परिवार ने पुरखों को उपहार स्वरूप बटुआ खुद नवाब ने उस दौर में लाची और लौंग से भरकर भेंट किया था जब वे बरतानवी हुकूमत के कैदी के रूप में कोलकाता के मठिया बुर्ज में कैद थे.
भारत कला भवन ने बीएचयू में बटुओं का लगाया प्रदर्शनी. प्रो. अजय कुमार सिंह ने बताया कि हमारे यहां के स्टाइल डिपार्टमेंट में यह पर्स 50 की संख्या में थे. फिजिकल वेरिफिकेशन करने के दौरान इसके बारे में पता लगा कि यह बटुए बहुत ही महत्वपूर्ण और यूनिक हैं. इनमें से एक वाजिद अली शाह का बटुआ है और कुछ बटुआ ग्वालियर राजबाड़ी का कलेक्शन था. इसको हम लोगों ने साफ करके प्रदर्शित किया क्योंकि अभी तक किसी को पता नहीं था कि हमारे पास इतने यूनिक बटुआ हैं.
आज के समय में ऐसा एग्जीबिशन लगाना हमको बहुत ही जरूरी लगा जहां तक मुझे जानकारी है शायद ही 25 से 30 सालों में पूरे भारतवर्ष बटुआ का प्रदर्शनी कहीं लगा हो. दूसरी तरफ यह सारे बटुए एंटीक्राफ्ट के बहुत ही बड़े और शानदार उदाहरण है.