उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

काशी के काल भैरव का बड़ा रहस्य; क्यों बिना इनके दर्शन किए बाबा विश्वनाथ की यात्रा रहती अधूरी

Bhairav Ashtami 2023 : आज काल भैरव अष्टमी का दिन है, जिसे शिव स्वरूप रौद्र रूप भैरव की उत्पत्ति का दिन कहा जाता है.काशी में काल भैरव क्यों महत्वपूर्ण हैं, क्यों काशी यात्रा उनके दर्शन के बिना अधूरी है. आईए जानते हैं इन सवालों के जवाब.

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 5, 2023, 11:08 AM IST

Etv Bharat
Etv Bharat

काल भैरव अष्टमी 2023 पर वाराणसी से संवाददाता गोपाल मिश्र की खास रिपोर्ट.

वाराणसी:काशी को भगवान विश्वनाथ की नगरी कहते हैं. भगवान भोलेनाथ जहां विराजमान हों, वहां उनके अलावा किसकी चल सकती है. लेकिन, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि काशी में विराजे भगवान विश्वनाथ की अपनी नगरी में खुद नहीं चलती, बल्कि पूरी कशी को चलाने वाले उनके ही एक स्वरूप भैरव हैं, जो काशी में काल भैरव के रूप में विराजमान हैं. आज काल भैरव अष्टमी का दिन है, जिसे शिव स्वरूप रौद्र रूप भैरव की उत्पत्ति का दिन कहा जाता है.

ऐसी मान्यता है कि अगहन मास की अष्टमी तिथि को ही भगवान शिव के इस रूप की उत्पत्ति हुई थी, जिस वजह से काशी में यह दिन बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है. दरअसल, काशी अलग-अलग खंडों में विभाजित है. काशी की प्रशासनिक व्यवस्था को चलाने का जिम्मा कोतवाल के रूप में काल भैरव को मिला हुआ है. पुराणों में वर्णित है कि जब काशी को स्थापित किया गया था, उस समय भगवान विश्वेश्वर ने पूरे काशी की संरचना के बाद इसकी देखरेख की जिम्मेदारी अपने स्वरूप काल भैरव को सौंपी थी.

काशी को कोतवाल काल भैरव

काल भैरव मंदिर के महंत नवीन गिरी का कहना है कि पुराणों के अनुसार जब ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से सर्वश्रेष्ठ बताते हुए भगवान ब्रह्मा के 5वें मस्तक ने अपने आप का बखान करते हुए अपने को त्रिदेव में सबसे बेहतर और उत्तम बताया. उस समय भगवान विष्णु ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह भी दी. क्योंकि महादेव देवों के देव हैं. वे सबसे उत्तम माने जाते हैं, लेकिन तीनों देवताओं के मौजूद रहते हुए भी ब्रह्मा के 5वें सिर में एक बार फिर से इसी बात को दोहराया.

इस दौरान भगवान शंकर बेहद नाराज हुए और उनके रौद्र रूप काल भैरव की उत्पत्ति हुई. जिसके बाद शिव के स्वरूप काल भैरव ने ब्रह्मा के उस पांचवें मस्तक को काट दिया. जिससे उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा. ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए काल भैरव को काशी भेजा गया. यहीं पर रहकर ब्रह्म हत्या से पाप की मुक्ति का अनुष्ठान करने लगे. ब्रह्मा के पांचवें मस्तक को हाथ में लेकर काल भैरव काशी में घूमते रहे.

काशी को कोतवाल काल भैरव

एक स्थान पर वह कटा मस्तक उनके हाथ से छूटा. जहां उन्होंने कुंड में स्नान करके उस मस्तक को कपाल भैरव के नाम से स्थापित किया. इसके बाद भगवान शंकर ने उन्हें काशी में ही स्थापित होकर काशी के कोतवाल के रूप में नियुक्त कर दिया. जिसके बाद से काल भैरव कोतवाल के रूप में यहां स्थापित हो गए.

मंदिर व्यवस्थापक आशुतोष दुबे के मुताबिक काशी कोतवाल को यहां ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली और शिव ने यहां भैरव के 8 स्वरूपों को नियुक्त किया है. सबको काशी की अलग-अलग जिम्मेदारी मिली, लेकिन काल भैरव को कोतवाल बनाया गया. आशुतोष दुबे का कहना है कि मान्यताओं और पुराणों के अनुसार काल भैरव के दर्शन के बिना काशी यात्रा दूरी मानी जाती है.

काशी को कोतवाल काल भैरव

इसके पीछे एक मान्यता यह भी है कि काशी में यमराज की भी नहीं चलती है. यहां पर भगवान भैरवनाथ का दंड मृत्यु के उपरांत शरीर पर पड़ता है. जो व्यक्ति के बुरे कर्मों के लिए होता है. इसलिए यहां पर दंड स्वरूप मंत्रों से खुद को अभिमंत्रित करवाने के साथ ही यहां मिलने वाले काले गड्ढे को भगवान भैरवनाथ के केस के रूप में धारण करने की भी मान्यता है. जो बुरी नजरों से तो बचाता ही है साथ ही अकाल मृत्यु के भय से भी मुक्ति दिलाता है.

अन्य मान्यताओं के साथ काल भैरव का दर्शन करने के लिए सिर्फ आम लोग नहीं बल्कि बड़े-बड़े वीआईपी भी पहुंचते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नेपाल के प्रधानमंत्री हो या फिर भारतीय जनता पार्टी समेत अन्य राजनीतिक दलों के बड़े नेता काशी आने पर काल भैरव के दर्शन किए बिना वापस नहीं जाते. इन मान्यताओं के अनुरूप काशी में आने वाला हर अधिकारी अपने ऑफिशियल जॉइनिंग से पहले काल भैरव मंदिर पहुंच कर बाबा के दरबार में हाजिरी लगाकर अपनी ऑफिशियल जॉइनिंग मानता है.

ये भी पढ़ेंः अच्छी पहल! लाइब्रेरी में बदले जाएंगे कूड़ाघर, पढ़ेंगे बच्चे: आप भी दान कर सकते हैं किताबें

ABOUT THE AUTHOR

...view details