वाराणसी:काशी को भगवान विश्वनाथ की नगरी कहते हैं. भगवान भोलेनाथ जहां विराजमान हों, वहां उनके अलावा किसकी चल सकती है. लेकिन, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि काशी में विराजे भगवान विश्वनाथ की अपनी नगरी में खुद नहीं चलती, बल्कि पूरी कशी को चलाने वाले उनके ही एक स्वरूप भैरव हैं, जो काशी में काल भैरव के रूप में विराजमान हैं. आज काल भैरव अष्टमी का दिन है, जिसे शिव स्वरूप रौद्र रूप भैरव की उत्पत्ति का दिन कहा जाता है.
ऐसी मान्यता है कि अगहन मास की अष्टमी तिथि को ही भगवान शिव के इस रूप की उत्पत्ति हुई थी, जिस वजह से काशी में यह दिन बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है. दरअसल, काशी अलग-अलग खंडों में विभाजित है. काशी की प्रशासनिक व्यवस्था को चलाने का जिम्मा कोतवाल के रूप में काल भैरव को मिला हुआ है. पुराणों में वर्णित है कि जब काशी को स्थापित किया गया था, उस समय भगवान विश्वेश्वर ने पूरे काशी की संरचना के बाद इसकी देखरेख की जिम्मेदारी अपने स्वरूप काल भैरव को सौंपी थी.
काल भैरव मंदिर के महंत नवीन गिरी का कहना है कि पुराणों के अनुसार जब ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से सर्वश्रेष्ठ बताते हुए भगवान ब्रह्मा के 5वें मस्तक ने अपने आप का बखान करते हुए अपने को त्रिदेव में सबसे बेहतर और उत्तम बताया. उस समय भगवान विष्णु ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह भी दी. क्योंकि महादेव देवों के देव हैं. वे सबसे उत्तम माने जाते हैं, लेकिन तीनों देवताओं के मौजूद रहते हुए भी ब्रह्मा के 5वें सिर में एक बार फिर से इसी बात को दोहराया.
इस दौरान भगवान शंकर बेहद नाराज हुए और उनके रौद्र रूप काल भैरव की उत्पत्ति हुई. जिसके बाद शिव के स्वरूप काल भैरव ने ब्रह्मा के उस पांचवें मस्तक को काट दिया. जिससे उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा. ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए काल भैरव को काशी भेजा गया. यहीं पर रहकर ब्रह्म हत्या से पाप की मुक्ति का अनुष्ठान करने लगे. ब्रह्मा के पांचवें मस्तक को हाथ में लेकर काल भैरव काशी में घूमते रहे.