वाराणसी: पंच दिवसीय दीपोत्सव का त्योहार धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. धनतेरस के साथ शुरू हुए इस त्योहार के हर दिन एक नया त्योहार और परंपराओं का निर्वहन पूरे देश में किया जा रहा है. दीपावली के अगले दिन अन्नकूट का पर्व संपन्न हुआ और आज यानी मंगलवार को भैया दूज के पर्व के साथ इस पंच दिवसीय अनुष्ठान की पूर्णाहुति होगी. आइए जानते हैं क्यों मनाया जाता है भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक भाई दूज का पर्व और आज भाई को किस मुहूर्त में लगाएं टीका जो वह हो दीर्घायु?
भैया दूज पर करें भाई को टीका.
यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है भाई दूज
इस बारे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर विनय कुमार पांडेय ने बताया कि शास्त्रों में भाई दूज से जुड़ी कथा यमराज और यमुना के बीच की है. बताया जाता है कि यमराज को यमुना ने टीका लगाकर उन्हें अपने घर पर भोजन कराकर उन पर आए कष्टों के निवारण की प्रार्थना भगवान से की थी. तब से यह परंपरा आज भी निभाई जा रही है. प्रोफेसर विनय का कहना है कि इस दिन को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है.
यम द्वितीया के दिन लगाएं भाई को टीका
द्वितीया तिथि का लोप होने की वजह से 29 अक्टूबर को वैसे तो पूरा दिन बहनें अपने भाइयों को टीका लगा सकती हैं, लेकिन यदि मुहूर्त की बात की जाए तो सुबह 6:13 से लेकर शाम 5:35 तक बहनें भाइयों को टीका लगाएं तो बेहतर होगा. प्रोफेसर विनय पांडे का कहना है कि आज के दिन भाइयों को अपनी बहनों के घर जाना चाहिए और बहनों के यहां ही खाना खाना चाहिए.
बहनों को भी भाइयों को तरह-तरह के पकवान खिलाने चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि यमराज भी अपनी बहन यमुना के घर आज ही के दिन उनसे टीका लगवाने और उनके यहां भोजन करने गए थे. बहन यमुना द्वारा इस दिन को यम द्वितीया के तौर पर मनाए जाने और बहनों द्वारा टीका लगाए जाने के बाद यमराज की तरफ से उन भाइयों को अपने भय से मुक्ति का वचन लिया गया था. इसलिए आज के दिन सभी बहनों को इस परंपरा का निर्वहन जरूर करना चाहिए.
यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है भाई दूज.
भाई को केसर का करें तिलक
प्रोफेसर विनय पांडेय का कहना है कि शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि का प्रारंभ 29 अक्टूबर मंगलवार को सुबह 6:13 से हो रहा है, जो 30 अक्टूबर दिन में बुधवार को सुबह 3:13 मिनट तक मान्य है. मान्यता है कि इस दिन भाई अपनी बहन के घर जाते हैं और भाई के सुखी जीवन के लिए बहने केसर अक्षत से उनको टीका लगाती हैं. इसके लिए वह केसर के जरिए दीवार पर अष्टदल कमल बनाती हैं. फिर व्रत का संकल्प करके यमराज की विधि विधान से पूजा भी करती हैं. यमुना और चित्रगुप्त की पूजा का विधान भी आज ही के दिन बताया गया है.
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राहुकाल में न करें पूजा
सहारनपुर के ज्योतिषाचार्य पंडित रोहित वशिष्ठ ने बताया कि इस दिन भाई अपनी बहनों के घर जाकर उनसे टीका कराते हैं. वहीं बहनें भाई की पूजा कर उन्हें नारियल गोला, मिठाइयां देकर भाइयों की लंबी उम्र और सुख समृद्धि की कामना करती हैं. भैया दूज को मनाने के लिए शुभ मुहूर्त का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी होता है. 2:50 बजे से 4:12 बजे तक राहुकाल चलने वाला है और राहुकाल में पूजन करना अशुभ माना जाता है. राहुकाल में किसी भी तरह की पूजा का लाभ नही मिलता.
इस दिन भाई को बहनों के घर भोजन करने से सुख समृद्धि आती है. बहन के घर में भी सुख शांति बनी रहती है. धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन भाई को अपने बहन के यहां भोजन करना चाहिए और भोजन के उपरांत वस्त्र आदि देकर बहन को प्रश्न करना चाहिए.
जानिए क्यों मनाया जाता है भैया दूज
धर्म शास्त्रों के मुताबिक भगवान सूर्यनारायण की पत्नी संज्ञा से यमुना और यमराज नाम की संतान हुई थी. बताया जाता है कि यमुना अपने भाई यमराज को लेकर बहुत चिंतित रहती थीं. यमुना हमेशा यमराज के बारे में सोचती रहती थी कि उनके भाई कहां हैं, स्वस्थ है या नहीं हैं. एक दिन अचानक यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने के लिए आये थे. इत्तफाक से उस द्वितीया तिथि थी. यमुना ने भाई यमराज की पूजा कर विभिन्न प्रकार के व्यजनों से भोजन कराया. बहन घर भोजन करके प्रसन्न होकर यमराज ने अपनी बहन को आशीर्वाद और तोहफे के रूप में वस्त्र आभूषण दिए. तभी से यह व्रत आरंभ हो गया.