वाराणसी: बनारस की पहचान तरह-तरह की चीजों से है. यहां का पान, साड़ियां, यहां की गलियां, खान-पान और यहां के घाट लोगों का मन मोह लेते हैं. बनारस गुलाबी मीनाकारी के नाम से जाना जाता है. चांदी के गहनों और कलाकृतियां समेत सजावटी सामानों पर होने वाली इस बेहतरीन कलाकारी को कुछ परिवारों ने बचाकर रखा है, लेकिन कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन के बाद इस कलाकारी को बचाकर रखने वाले परिवारों की कमर टूट चुकी है. सरकार ने भी हाथ खींच रखे हैं. अब सवाल यह उठता है कि बनारस की शान और बनारस की आन कही जाने वाली गुलाबी मीनाकारी का वजूद कब तक कायम रह पाएगा.
50 परिवार के 250 लोगों के सामने संकट
कुंज बिहारी गुलाबी मीनाकारी के आर्टिजन हैं. वे इस क्षेत्र में राष्ट्रपति सम्मान से नवाजे जा चुके हैं, लेकिन जिस सरकार ने उन्हें ये सम्मान दिया उसी सरकार की उपेक्षा अब उन पर भारी पड़ रही है. ये अकेले कुंज बिहारी की बात नहीं है. 50 परिवारों के 250 आर्टिजन जो गुलाबी मीनाकारी से जुड़े हैं, वे इस वक़्त भुखमरी के कगार पर हैं. काशी में चार सौ साल की परंपरा वाली मीनाकारी अब बचेगी या नहीं इसमें भी संशय है. इस काम को करने वालों का सरकारी उपेक्षा की वजह से मोह भंग हो रहा है. कभी पीएम मोदी ने बनारस की गुलाबी मीनाकारी को आसमान की बुलंदियों तक ले जाने का आश्वासन दिया था, लेकिन आज यह परंपरा अपनी जमीन खोजते नजर आ रही है.
नहीं मिली कोई सरकारी मदद
सबसे बड़ी बात यह है कि गुलाबी मीनाकारी से जुड़े कारीगरों के सामने और किसी काम को करने का विकल्प नहीं है. बचपन से इसी काम को सीखने के बाद उम्मीद थी कि स्थितियां बदल जाएंगी. अपने पारंपरिक पैतृक काम को बचाकर रखने के साथ इस कलाकारी को जीवंत रखने की जुगत में आज कारीगरों को दोहराए पर लाकर खड़ा कर दिया है. हालात यह हैं कि लॉकडाउन के बाद से आर्डर मिला है, लेकिन पुराने पैसे का भुगतान नहीं हुआ है. इस वजह से आर्थिक संकट गहराता जा रहा है. बच्चों के स्कूल की फीस भरने से लेकर खुद की दवाई करने तक की स्थिति नहीं है. कलाकारों को न आयुष्मान कार्ड मिले हैं, न ही कोई सरकारी मदद, जिसकी वजह से अब इनकी उम्मीद टूट रही है.