वाराणसी: धर्मनगरी काशी में पुरातन काल की चीजों को सुरक्षित रखने के लिए मौजूद एक संग्रहालय आज भी अंग्रेजी हुकूमत के बाद बनी सरकार के खर्च पर संचालित हो रहा है. इस वजह से इस संग्रहालय में मौजूद कीमती चीजों को संरक्षित और सुरक्षित रखना अब मुश्किल होता जा रहा है. आजाद भारत के शुरुआती दौर में बने इस संग्रहालय में हजारों साल पुरानी कीमती चीजें हैं. वहीं अब सरकार की उदासीनता और विश्वविद्यालय प्रशासन की नजरअंदाजी की वजह से यह संग्रहालय बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर है.
बदहाली पर आंसू बहा रहा संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय स्थित संग्रहालय.
डॉक्टर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना 1958 में हुई. विश्वविद्यालय में मौजूद पुरातत्व संग्रहालय की 1960 में स्थापना हुई. बिल्डिंग पहले बनी और संग्रहालय बाद में इसलिए संग्रहालय के हिसाब से इस बिल्डिंग में कोई भी चीज तैयार नहीं कराई गई थी.
पुरातत्व संग्रहालय के इंचार्ज और अध्यक्ष डॉ. विमल कुमार त्रिपाठी का कहना है मुगलकालीन, गुप्तकालीन के अलावा यहां हजारों साल पुरानी चीजों को यहां पर संजोकर रखा गया है, जो देश ही नहीं बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से हासिल हुई है. इसके बाद भी संग्रहालय की तरफ किसी का ध्यान नहीं आ रहा है. इस वजह से यहां मौजूद पुरातन चीजों पर खतरा मंडराने लगा है.
संग्रहालय आज भी अंग्रेजी हुकूमत के बाद बनाई गई नई सरकारों के निर्धारित खर्च पर ही चल रहा है. क्योंकि 1960 में जब यह संग्रहालय बना तो उस वक्त इस संग्रहालय को मेंटेन रखने के लिए 8000 रुपये वार्षिक खर्च को निर्धारित किया गया था, लेकिन 60 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी इस खर्च में महज 2000 रुपये की बढ़ोतरी हुई है.