वाराणसी:इस जनवरी की 22 तारीख बेहद खास होने जा रही है. अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही होगी. पूरा देश इस आयोजन से बेहद खुश होगा. लेकिन, हमारे बीच कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्हें हमसे कई गुना अधिक खुशी हो रही होगी. यह खुशी होगी उनके संघर्षों के परिणाम की. अपने सपने को सच होता देखने की. खुशी होगी ऐसे परिवारों की, जिन्होंने इस दिन को देखने के लिए अपने बच्चों को बलिदान कर दिया. जी हां! हम बात कर रहे हैं उन लोगों की, जिन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर बनाने का सपना देखा था. जिन लोगों ने संघर्ष में अपने प्राण त्याग दिए. जो लोग आज इस संघर्ष से निकलकर आए हैं और अपने सपने को पूरा होता देख रहे हैं.
'सू्र्योदय से पहले, अरुणिमा छाने से पहले एक ऐसा अंधेरा, जिसमें हाथ को हाथ न दिखे. उसमें से हम निकले हैं. संपूर्ण आंदोलन से हम निकले हैं. आज सूर्यवंश के दीपक भगवान राम के बहाने हिन्दू राष्ट्र का सूर्योदय हो रहा है.' अखिल भारतीय संत समिति महामंत्री जितेंद्रानंद सरस्वती ने जब ये बात कही तो उनके चेहरे पर खुशी का भाव देखने लायक था. उन्होंने अपने संघर्षों की कहानी सुनाई. उस कहानी में युवावस्था के सपने थे, जीवन में कुछ करने की चाहत थी. लेकिन, राम मंदिर आंदोलन के संघर्ष भी शामिल थे. जेल भेजा जाना, एनएसए का लगाया जाना और फिर भविष्य को लेकर चिंताओं के बीच जो जीवन उन्होंने बताया वो आज रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के ऐलान के बाद खुशी में बदल गया है.
'गमछे में ही थे जब, पुलिस उठा ले गई थी'
जितेंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि सात अक्टूबर की शाम थी. 7:20 का समाचार आता था. सुना कि कल्याण सिंह वहां पर हिन्दुओं का हालचाल लेने के लिए गए, जहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. देवरिया जिले में वे राम ज्योति रथ के पुजारी थे. रात में अहिरौली थाने के एक गांव में सोए हुए थे. पुलिस ने घेरकर उठा लिया. जितेंद्रानंद ने बताया कि वे उस समय सिर्फ गमछे में ही थे. बाद में कपड़े का बैग लाकर दिया गया. कपड़ा भी तब पहनने दिया गया, जब देवरिया में गिरफ्तारी के बाद 24 घंटे के अंदर बस्ती जेल में शिफ्ट कर दिया गया. तब कपड़े पहनने के लिए दिए गए. खाने के नाम पर चार-चार केले मिले थे. उस समय उनकी उम्र 18 साल थी. लगभग 32 किलो का दुबला-पतला शरीर था.
'इंटर पास किया था जब हुई थी गिरफ्तारी'
वे कहते हैं कि उस समय ये संघर्ष था कि जेल से कब बाहर निकलेंगे. क्या होगा आगे? जीवन कैसा चलेगा? जून में इंटरमीडिएट पास किया था. अक्टूबर में गिरफ्तारी हो गई थी. ऐसे में बीए में एडमिशन होगा कि नहीं? आगे की पढ़ाई चल पाएगी कि नहीं? धारा 153 ए, एनएसए लगने के कारण अब आगे भविष्य क्या होगा? कहीं ये लोग हिस्ट्रीशीट तो नहीं खोल देंगे? ये सारे सवाल मन में थे. ये उनके ही मन में नहीं थे. उत्तर प्रदेश के इंटर कॉलेजों को जेल बनाकर के पांच लाख रामभक्तों को उसमें रखा था. मुलायम सिंह ने ये चुनौती दी थी कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मारेगा. उस अयोध्या में नियत समय पर कारसेवक लाखों की संख्या में पहुंच गए.
'योजनाबद्ध तरीके से लाशें बिछा दी गईं'
जितेंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि 30 अक्टूबर की ये बौखलाहट थी, जो 2 नवंबर को योजनाबद्ध तरीके से लाशें बिछा दी गईं. स्वाभाविक है कि आज उस संघर्ष की सफलता देखकर खुशी मिल रही है. जो लोग आज नहीं हैं, जिन्होंने संघर्ष किया था. उनमें अशोक सिंघल, विष्णु हरि डालमिया, श्रीश चंद दीक्षित, आचार्य गिरिराज किशोर से लेकर के महंतों में महंत रामचंद दास परमहंस, महंत अवैद्यनाथ, गुरुदेव शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज इन लोगों की पूरी एक श्रृंखला थी. इसमें गुरुदेव के अलावा परमानंद जी, नृत्यगोपाल दास इन तीन को छोड़कर तो सारे वरिष्ठ संतों में से आज कोई जीवित नहीं है. उन सबकी आत्मा कितनी प्रफुल्लित हो रही होगी.