वाराणसी:मां गंगा के तट पर बसी भगवान शिव की नगरी काशी अनोखी ही नहीं बल्कि सभी शहर से अलग भी है. यही वजह है कि इस शहर को जीवंत शहर भी कहा जाता है. काशी में स्थित विभिन्न शिवालयों का पुराणों में भी महत्व है. लेकिन, आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जिसका वर्णन पुराणों में है और उसकी आकृति भी भारत की कई परंपराओं का प्रतीक है. 12वीं सदी का यह प्राचीन मंदिर आज भी उसी अवस्था में है और अपने इतिहास को बयां कर रहा है. काशी की प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा का यह पहला पड़ाव है. जिसे कर्मदेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. पुरातत्व विभाग के अनुसार यह काशी का सबसे प्राचीन मंदिर है.
अनोखा नक्काशी दार सजावट शिखर:मंदिर का शिखर बेहद ही खूबसूरत है. इसकी सजावट में शानदार नक्काशी का इस्तेमाल किया गया है. मंदिर का मुख्य द्वार 3 फीट 5 इंच चौड़ा तथा 6 फीट ऊंचा है. इसके गर्भ गृह में भगवान कर्मदेश्वर विराजमान हैं. इस शिवलिंग पर लगातार जलधारा गिरती रहती है. वास्तु शिल्प और मूर्ति शिल्प के आधार पर यह मंदिर बहुत ही खास है. मंदिर के विखंडित खंभों की स्थिति देखकर यह प्रतीत होता है कि मंदिर के अखंड मंडप का बेहतर निर्माण रहा होगा. लकड़ियों के आधार पर सादे पत्थरों द्वारा तैयार शिखर भी इस तथ्य को और स्पष्ट करते हैं. खंभों पर नक्काशीदार सजावट में पत्तियों बनी हुई हैं. 15वीं शताब्दी में पाए गए 2 स्तंभों पर अभिलेख हैं. इससे स्पष्ट होता है कि अर्ध मंडप की निर्माण पुरानी सामग्री को पुनः प्रयोग में लाया गया है.
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खजुराहो के मंदिर की झलक:प्राचीन कर्मदेश्वर महादेव मंदिर की कुछ आकृतियां खजुराहो के मंदिर में दक्षिणी पर बनी उमा महेश्वर की मूर्तियों की तरह है. इस प्रकार उत्तर तरफ निर्मित रेवती और ब्रह्मा की मूर्ति की सजावाट गुप्तकालीन मूर्ति कला से प्रभावित है. मंदिर पर बनी आकृतियां पुष्प और चेहरे पर भी प्रभावी मुस्कान ले आती हैं. पहली बार अगर कोई भी व्यक्ति इस मंदिर को देखेगा तो एक पल के लिए लगेगा कि यह खजुराहो के मंदिर का हिस्सा है.
चंदेलवंशी राजाओं से निर्मित होने के संकेत:काशी की धार्मिक परंपराओं में यात्रा के दौरान काशी खंड स्थित शिवालयों में दर्शन-पूजन का विशेष महत्व है. काशी की पंचकोशी यात्रा के पहले विश्राम के रूप में यह मंदिर प्रसिद्ध है. इतिहासकारों के अनुसार चंदेल वंश के राजाओं ने यहां मंदिर का निर्माण कराया था. मंदिर के पास एक कुंड है जिसमें लोग स्नान करने के बाद ही महादेव के दर्शन करते हैं और जल अर्पित करते हैं. सावन में महाशिवरात्रि पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है. साथ ही दूर-दूर से भक्तजन दर्शन करने के लिए आते हैं.
आंसू सेवा सरोवर का निर्माण:कर्मदेश्वर महादेव मंदिर की एक वर्षों पुरानी मान्यता है.इसमंदिर में कर्मदे ऋषि ने अपनी तपस्या से भगवान विष्णु को प्रसन्न किया था. लेकिन, मंदिर से जुड़े लोग यह बताते हैं कि कमलेश्वर ऋषि जब तपस्या में लीन थे. तभी किसी बात पर उनकी आंखों में आंसू आ गया और उनके आंसुओं से ही सरोवर का निर्माण हुआ. ऐसी मान्यता है कि सरोवर में जिसका प्रतिबिम्ब बन जाए उसकी आयु बढ़ जाती है. वहीं, यह भी माना जाता है कि भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था तब उन्हें ब्रहम हत्या लगी थी. इसके बाद गुरु वशिष्ठ के आज्ञा से उन्होंने पंचकोशी यात्रा की थी.
कंदवा गांव में मंदिर:डॉक्टर सुभाष चंद्र यादव ने बताया कि बनारस का सबसे पुराना मंदिर कर्मदेश्वर महादेव का है. यह मंदिर जिले के कंदवा गांव में स्थित है. यह मंदिर पंचकोशी यात्रा के प्रथम पड़ाव में पड़ता है. 12वीं सदी में बना हुआ यह मंदिर काशी के धार्मिक परंपरा का बड़ा ही महत्वपूर्ण है. इसमें सभी संप्रदायों का समन्वय काशी के समिति व धार्मिक परंपरा से मेल खाता है. शिव को समर्पित इस मंदिर के बाहरी दीवारों पर शैव, वैष्णव,शाक्य, सभी देवी देवताओं की मूर्ति आकृति है.
भगवान राम भी कर चुके दर्शन:पंडित हरेंद्र उपाध्याय ने बताया कि यह मंदिर कर्मद ऋषि की तपोस्थली है. इसी वजह से कर्मदेश्वर महादेव मंदिर के नाम जाना जाता है. वहीं, काशी खंड पुस्तक में इसका वर्णन भी है. काशी की प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा का यह पहला पड़ाव है. माना जाता है कि लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम ने काशी में पंचकोशी यात्रा की थी. भगवान श्री राम ने अपने इष्ट महादेव को प्रसन्न करन हेतु इस मंदिर में दर्शन-पूजन किया था.
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