वाराणसी: धर्मनगरी काशी में कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी या धात्रीनवमी और "कुष्मांडा नवमी" कहा जाता है. इस दिन स्नान पूजन, तर्पण और दान से अक्षय फल प्राप्त होने की बात कही गई है. साथ ही इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है. यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने की भारतीय संस्कृति की मान्यता है. इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और भोजन करने से रोगों का नाश होता है और महिलाएं संतान की मंगलकामना के लिए आंवले के पेड़ की पूजा करती हैं.
जिले के विभिन्न धार्मिक स्थलों सहित काशी हिंदू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, संपूर्णानंद विश्वविद्यालय अन्य स्थानों पर लोगों ने आंवले के वृक्ष की पूरे विधि विधान से पूजा पाठ किया. महिलाओं ने वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर दीपक जलाकर, फल अर्पण कर भगवान विष्णु आराधना किया. वहीं खीर, पूड़ी, सब्जी आंवले के वृक्ष के नीचे बनाकर आंवले को अर्पण कर उसके बाद प्रसाद रूप में उसे ग्रहण किया.