वाराणसी: बनारस को त्योहारों का शहर कहा जाता है. इस शहर में कई रामलीला सदियों से हो रही है. कुछ रामलीलाएं को तो खुद तुलसीदास और उनके अनन्य भक्त मेघा भगत ने शुरू कि या था. ऐसी ही एक लीला चित्रकूट रामलीला समिति के द्वारा हर साल संचालित की जाती है. इस रामलीला समिति का नाटी इमली का विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप लक्खा मेले के नाम से जाना जाता है, जो दशहरे के अगले दिन संपन्न होता है. गुरूवार को इस 479 साल पुरानी रामलीला का भरत मिलाप धूमधाम के साथ संपन्न हुआ.
काशी की सबसे पुरानी और ऐतिहासिक 479 वर्ष पुरानी रामलीला में बुधवार को भरत मिलाप की झांकी दिखाई गई. काशी में आज भी 16वीं शताब्दी में शुरू की गई रामलीला का आयोजन होता है. 479 वर्ष पुरानी इस रामलीला के प्रेमी आज भी अपने पूर्वजों की परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी के मित्र मेघा भगत जी ने इस राम लीला शुरुआत की थी. यहां आयोजित होने वाले भरत मिलाप को देखने के लिए लाखों की संख्या में लोग आते हैं.
काशी की 479 साल पुरानी रामलीला कहा जाता है कि भगवान श्रीराम के जाने के बाद अयोध्यावासियों ने राम की स्मृति के लिए रामलीला का संकल्प लेकर उसे मूर्त रूप दिया था. लेकिन, प्रमाणों में स्पष्ट है कि रामलीला के प्रेरक गोस्वामी तुलसीदास स्वयं थे. उन्होंने अपने मित्र मेघा भगत के माध्यम से रामलीलाओं की प्रस्तुति मंचन की शुरुआत कराई. स्वप्न दर्शन से प्राप्त प्रभु की प्रेरणा से मेघा भगत ने काशी में 479 साल पहले चित्रकूट रामलीला के नाम से रामलीला का मंचन शुरू किया था. काशी के अयोध्या भवन बड़ा गणेश मंदिर के पास स्थित भवन में इसका प्रारंभ होता है. यह रामलीला 7 किलोमीटर की परिधि में 22 दिनों तक चलती है.
रामलीला समिति के व्यवस्थापक मुकुंद उपाध्याय ने बताया कि इस साल रामलीला को 479 वर्ष हो गए हैं. लीला का प्रारंभ 16वीं सदी में गोस्वामी तुलसीदास जी के समकक्ष मेघा भगत ने शुरु किया था. कहा जाता है कि मेगा भगत जी चित्रकूट में रामलीला देखने जाते थे. वह जब जाने में असमर्थ हो गए, तो भगवान ने उन्हें स्वप्न में कहा तुम काशी जाओ और वहां लीला प्रारंभ करो. मैं भरत मिलाप के दिन तुम्हें दर्शन दूंगा. मेघा भगत ने जब लीला प्रारंभ की थी. तो उस समय रामचरित मानस की रचना नहीं हुई थी.
इसीलिए वाल्मीकि रामायण के आधार पर चित्रकूट की रामलीला की जाती है, यह लीला थोड़ी अलग है. इसकी शुरुआत अयोध्या कांड के राज्याभिषेक से होती है और भरत मिलाप, राजगद्दी तक यह लीला समाप्त हो जाती है. उन्होंने बताया कि आपने बहुत सी रामलीला देखी होगी. यहां भगवान का स्वरूप विराजमान होता है और आज भी यहां वाल्मीकि रामायण का पाठ होता है. 22 दिन की रामलीला में कहीं भी भगवान द्वारा कोई डायलॉग नहीं बोला जाता है. वर्तमान कुंवर अनंत नारायण सिंह भी हाथी पर सवार होकर आते हैं और इस लीला का आनंद लेते हैं. इतना ही नहीं परंपराओं के अनुरूप भगवान श्रीराम का रथ सिर्फ और सिर्फ यदुवंशी समाज के लोग उठाते हैं. जो आज भी इस परंपरा को निभा रहे हैं.
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