वाराणसीःनई शिक्षा नीति के तहत सरकार लगातार प्राचीन शिक्षा पद्धति को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है. इसका उद्देश्य युवाओं को परंपरागत शिक्षा से जोड़ने के साथ उनके मस्तिष्क के कार्य को बेहतर करने का है. इसी क्रम में वाराणसी के सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में अष्टावधान कार्यक्रम का आयोजन होने जा रहा है.
दरअसल, सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय 25 मार्च को अपना 66वां स्थापनोत्सव मना रहा है. इस दिन सुबह 11 बजे पाणिनि भवन सभागार में इस विश्वविद्यालय के भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र एवं उत्तर प्रदेश संस्कृत उत्थान के संयुक्त तत्वाधान में अखिल भारतीय अष्टावधान कार्यक्रम दशकों बाद होने जा रहा है.
ऋषि-मुनियों के समय की है ये प्रतियोगिता
युवाओं के मस्तिष्क को एकाग्र करने व उनके मानसिक विकास के लिए विश्वविद्यालय सैंकड़ों वर्ष पुराने खेल प्रतियोगिता को फिर से शुरू करने जा रहा है. यह खेल प्रतियोगिता ऋषि-मुनियों के समय की मानी जाती है, जिसका नाम अष्टावधानम् है. आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार इस प्रतियोगिता को शुरू करने के लिए प्रयासरत भी है.
अष्टावधानम् मन की एकाग्रता है
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने बताया कि अष्टावधान विधा में निषेधाक्षरी, समस्या पूर्ति, दत्तपदी, प्रतिमाला, काव्यकला, अप्रस्तुत प्रसंगी, व्यस्ताक्षरी, आशु कवित्व एवं घंटानाद महत्वपूर्ण अंग या विधाएं हैं. उन्होंने बताया कि अवधानम मन की एकाग्रता है. अवधानी करतब की अदाकारा है.
आठ विद्वानों द्वारा किया जाता है बुद्धि परीक्षण
कुलपति ने बताया कि इसमें विषय क्षेत्र में ध्यान केंद्रित करने, ध्यान बनाए रखने, तेज दिमाग और व्यापक ज्ञान रखने की उत्कृष्ट क्षमता का परीक्षण आठवें प्रच्छक (विशेषज्ञों) द्वारा किया जाता है. अष्टावधान एक साहित्यिक चर्चा है. यहां पर एक विद्वान की बुद्धि का परीक्षण आठ विद्वानों द्वारा किया जाता है. विद्वान जब जीतता है तो उसे सम्मानित करने की परंपरा रही है.
दशकों बाद होने जा रहा है यह कार्यक्रम
उन्होनें बताया कि इस कार्यक्रम के संयोजक प्रो. हरिप्रसाद अधिकारी एवं सह संयोजक प्रो. दिनेश कुमार गर्ग होंगे. पाणिनि भवन सभागार में इस विश्वविद्यालय के भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र एवं उत्तर प्रदेश संस्कृत उत्थान के संयुक्त तत्वाधान में अखिल भारतीय अष्टावधान कार्यक्रम दशकों बाद होने जा रहा है.