वाराणसी: काशी में मरने से मोक्ष प्राप्त होता है यह तो हर किसी को पता है, लेकिन काशी के घाटों पर मृत आत्माओं की शांति के लिए कार्तिक मास में दीपदान करने का जो विशेष महत्व है वह शायद बहुत कम लोगों को पता है. आइए जानते हैं क्यों है आकाशदीप इतना खास और घाटों पर क्यों जलते है यह आकाशदीप.
पूर्वजों और शहीदों की स्मृति में आकाशदीप
इस परंपरा का निर्वाहन महाभारत काल से होता आ रहा है. पुरातन परंपरा के अनुरूप कार्तिक मास के प्रथम दिन से अंतिम दिन यानी देव दीपावली तक आकाशदीप जलाने की पुरातन परंपरा है. लंबे बांसों पर बांस की टोकरी में जलते दीपक को रखकर बांस के अंतिम छोर पर भेजते हुए पूर्वजों और शहीदों की स्मृति में इसे जलाया जाता है.
दशाश्वमेध घाट पर आकाशदीप कार्यक्रम का आयोजन. काशी के घाट पर देशभक्ति का माहौल
' ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी' देशभक्ति की चाशनी में डूबा यह गीत आज भी अगर कोई सुनता है तो वह उन शहीदों को नमन करना नहीं भूलता. सोमवार को काशी के दशाश्वमेध घाट पर कुछ ऐसा ही देशभक्ति का माहौल देखने को मिला.
आर्मी बैंड की धुन और सशस्त्र आर्मी जवानों की मौजूदगी में देश की खातिर कुर्बान होने वाले शहीदों और पूर्वजों की स्मृति में कार्तिक मास के पहले दिन गंगा सेवा निधि की तरफ से श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया.
कार्यक्रम में 39 गोरखा ट्रेनिंग सेंटर, चार एयर फोर्स सिलेक्शन बोर्ड और पंचानवे बटालियन सीआरपीएफ के जवान के साथ सिविल पुलिस के आला अधिकारी भी मौजूद रहे. इन सभी की मौजूदगी में शहीदों को नमन कर आकाशदीप जलाए गए.
आकाशदीप कार्यक्रम के माध्यम से शहीदों को नमन
बताया जाता है कि 1999 में कारगिल वार के बाद दशाश्वमेध घाट पर शहीदों को नमन करने के लिए इस आकाशदीप कार्यक्रम का आयोजन किया जाने लगा. सेना और पुलिस की मौजूदगी में यह कार्यक्रम बड़े पैमाने पर होता है.
पौराणिक मान्यता है कि महाभारत काल में युद्ध के दौरान शहीद हुए लोगों और जवानों के लिए काशी में आकाशदीप गंगा घाटों पर टिमटिमाया करते थे, जिसे परंपरा के अनुरूप राजा महाराजाओं ने जिंदा रखा और आज भी यह पौराणिक परंपरा जीवित है.
मान्यता यह भी है कि काशी के गंगा घाट पर कार्तिक माह के दौरान एक माह तक यदि दीपदान किया जाए तो सभी पापों से मुक्ति मिलती है और पूर्वजों का आशीर्वाद भी मिलता है. इसी उम्मीद के साथ लोग यहां पर एक माह तक दीपदान करते हैं.