वाराणसीः व्याकरण के मर्मज्ञ विद्वान आचार्य अखिलानन्द शास्त्री का बीएचयू अस्पताल में हृदय गति रुकने की वजह से निधन हो गया. काशी ने 24 घंटे के भीतर दो विद्वानों को खो दिया. काशी के विद्वान और व्याकरण जगत के लोगों में एक बार फिर मायूसी छा गई. देर रात महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट पर उनके छोटे भतीजे वरुण कुमार शास्त्री ने मुखाग्नि दी.
आचार्य अखिलानंद शास्त्री का जन्म बिहार के जिला गोपालगंज गांव बाजार मटिनिहा कोचाई में साल 1949 में हुआ था. जिसके बाद 20 जनवरी 1960 में वाराणसी आये. जिसके बाद उन्होंने बीएचयू से संस्कृत में स्नातक किया और गोल्ड मेडलिस्ट बने. उसके बाद उन्होंने संस्कृत यूनिवर्सिटी से अपने गुरु वागीश शास्त्री के सानिध्य में संस्कृत व्याकरण में पीएचडी की.
आचार्य अखिलानंद श्री काशी बिजली परिषद के महामंत्री भी रहे और सरजूपारी ब्राह्मण महासभा के महामंत्री भी रहे. साल 1986 में आचार्य अखिलानंद शास्त्री ने आसाम की कामाख्या में पहाल अन्नक्षेत्र खोला. उसके बाद साल 1998 में विंध्याचल में अन्नक्षेत्र खोला. साथ ही विंध्याचल में शक्ति साधना धाम आश्रम खोला. जिसमें भाई बहन मिलन नाम से मंदिर बनवाया. आश्रम में 10 महाविद्या का मंदिर बनाया. अखिलानंद व्याकरण के विद्वान थे और भागवत कथा करते थे. साल 1992 में श्री रामाचारि संस्कृत स्नातकोत्तर महाविद्यालय में अध्यापक रहे और कुछ साल बाद ही प्रधानाचार्य बने. इसके बाद वो वर्ष 2011 में प्रधानाचार्य पद से मुक्त हो गए. उनकी पांच बेटियां हैं. सबसे बड़ी बेटी डॉ गीता शास्त्री, गायत्री द्विवेदी, उषा पांडेय, आशा चतुर्वेदी और सबसे छोटी बेटी भक्ति किरण शास्त्री हैं.
मिर्जापुर के काली खो के पास शक्ति आराधना आश्रम की स्थापना किया. जहां पर मां काली की एक दिव्य प्रतिमा है. सुधाकर शुक्ल ने बताया उन्होंने सनातन धर्म को लेकर अनेक कार्य किया. शिक्षा और संस्कृत को बढ़ावा देना, गरीब छात्रों की मदद करना और अन्य क्षेत्र पर सबसे ज्यादा कार्य किये.