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दीपावली के अगले दिन सजे देवालय, भगवान के आगे अर्पित हुआ 56 व्यंजनों का भोग

दीपावली का पर्व पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. दिवाली के साथ पंच दिवसीय प्रकाश पर्व के समापन की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं. आज दीपावली के दूसरे दिन पूरे देश में अन्नकूट का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है.

दीपावली के अगले दिन सजे देवालय
दीपावली के अगले दिन सजे देवालय

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Published : Nov 5, 2021, 7:59 PM IST

वाराणसीः अन्नकूट पर्व में भगवान के आगे 56 तरह के व्यंजनों का भोग अर्पित किया जाता है और ये बड़ा ही मनमोहक और अलग तरह का आयोजन होता है. काशी में तो अन्नकूट पर्व को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. भगवान श्री काशी विश्वनाथ, माता अन्नपूर्णा के साथ ही काशी के सभी देवालयों को बड़े ही भव्य तरीके से सजाया जाता है. लड्डू के भव्य मंदिर बनाकर भगवान को भेग अर्पित किया जाता है.

अन्नकूट पर्व को लेकर ऐसी मान्यता है कि द्वापर काल में जब भगवान इंद्र ने अपने घमंड में चूर होकर लगातार पांच दिनों तक भारी बारिश शुरू कर दी. तब भगवान श्री कृष्ण ने लोगों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए कानी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया था. गोवर्धन पर्वत उठाए जाने के बाद इंद्र का घमंड चूर-चूर हो गया था. जिसके बाद इंद्र ने अपनी गलती मानते हुए बारिश को रोक दिया. इसी खुशी में लोगों ने भगवान के सामने 56 तरह के व्यंजनों का भोग बनाकर उन्हें अर्पित किया और अन्न का पहाड़ भगवान को समर्पित करते हुए धन्यवाद किया. तभी से लेकर आजतक अन्नकूट पर्व पूरे धूमधाम के साथ मनाया जाता है.

भगवान के आगे अर्पित हुआ 56 व्यंजनों का भोग

अन्नकूट पर्व पर भगवान के आगे 56 व्यंजन तैयार करके उन्हें भोग लगाया जाता है. काशी में इस परंपरा का निर्वहन हर देवालय और शिवालय में होता रहा है और आज भी इस परंपरा को निभाया जा रहा है. इस क्रम में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में मिष्ठान नमकीन और भोजन के 56 व्यंजन को तैयार करके बाबा विश्वनाथ के आगे समर्पित किया गया. लड्डू और मगदल का भव्य मंदिर बनाया गया जिसे देखकर यहां आने वाले दर्शनार्थी भी काफी भाव-विभोर दिखाई दिए.

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बाबा विश्वनाथ के साथ ही माता अन्नपूर्णा के मंदिर में भी 56 व्यंजनों का भोग लगाया गया और लड्डू और मगदल के मंदिर में माता अन्नपूर्णा विराजमान हुईं और उनके आगे भगवान शिव भिक्षा मांगते नजर आए. ऐसी मान्यता है कि काशी में शिव अन्नपूर्णा से दीक्षा लेकर काशीवासियों का पेट भरते हैं. इसी परंपरा के अनुरूप भव्य झांकियां सजाई गईं और लोग भगवान का दर्शन करके अपने आप को धन्य मांन रहे थे.

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