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काशी के इस मंदिर में अपने साले के साथ पूजे जाते हैं महादेव, अनोखी है इसके पीछे की कहानी

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Published : Jul 21, 2023, 11:08 AM IST

Updated : Jul 21, 2023, 2:16 PM IST

काशी में एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां भगवान शिव अपने साले के साथ विराजमान हैं. यहां भगवान शिव से पहले उनके साले की पूजा की जाती है, लेकिन ऐसा क्यों? चलिए आपको इसके पीछे की कहानी बताते हैं.

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काशी के सारंगनाथ मंदिर में भगवान शिव और उनके साले की पूजा होती है .

वाराणसीःदेवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में कहा जाता है कि भगवान शिव यहां के कण-कण में वास करते हैं. वो किसी न किसी रूप में सभी को दर्शन देते हैं. काशी के सभी शिवलिंग भगवान विश्वनाथ के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित हैं. ताकि, एक ही स्थान पर सारे भक्त एकत्र हों और अव्यवस्था न हो. इस लेकर संस्कृत में एक श्लोक भी है.

तव प्रतिनिधीकृत्या- स्मामिस्त्वद्भक्तिभावितैः।
प्रतिष्ठतेषु लिंगेषु सान्निध्यं भवतोस्त्विह।।

काशी में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां बाबा विश्वनाथ अपने साले सारंग ऋषि के साथ विराजमान हैं. मान्यता है कि सावन में यहां एक बार दर्शन करने से पूरे साल भर का बाबा विश्वनाथ के दर्शन का फल प्राप्त होता है. साथ ही दर्शन करने से चर्म रोग से भी मुक्ति मिलती है. यहां सारंगदेव को गोंद चढ़ाकर लोग अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं. सारंगनाथ मंदिर में बाबा भोलेनाथ से पहले उनके साले की पूजा की जाती है. लेकिन क्यो? चलिए आपको बताते है.

सारंगनाथ मंदिर के पुजारी श्यामसुंदर दीक्षित ने बताया कि लोक कथाओं के अनुसार भगवान शंकर की शादी सती से हुई थी, जिनके पिता राजा दक्षप्रजापति थे. सती के भाई सारंग ऋषी विवाह के दौरान अपने घर पर नहीं थे. वह विद्या ग्रहण करने के लिए गुरुकुल गए हुए थे. विवाह उपरांत सारंग ऋषि जब घर लौटे, तो उन्होंने अपने पिता से कहा कि उन्होंने अन्याय किया. एक राजकुमारी की विवाह ऐसे इंसान से कर दिया, जिसके पास न घर है. न पहनने को वस्त्र हैं. भोजन में भांग धतूरे खाते हैं. मृग छाल पहनकर टहलते हैं. भस्मी रमाते हैं. आपने राजकुमारी की शादी ऐसे आदमी से कर दी.

सारंगनाथ मंदिर में स्थापित है दो शिवलिंग

सारंग ऋषि ने की यहां तपस्याःश्यामसुंदर दीक्षित ने बताया कि इसके बाद सारंग ने कहा उन्हें अपनी बहन के लिए काशी में कुछ महल बनवाने हैं. इसके बाद वह बहुत सारा सोना और मुद्रा लेकर काशी आने लगे. बीच मार्ग में काशी से पहले ऋषीपतंग मार्ग पड़ा. यहां बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था. वह यहीं पर थोड़ी देर विश्राम करने लगे, इस दौरान उन्हें नींद लग गयी. तब उन्होंने स्वप्न में देखा की पूरी काशी सोने की है. इसके बाद उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और बाबा विश्वनाथ से क्षमा याचना करते हुए, उन्होंने यहीं पर कई वर्षों तक घोर तपस्या की. उनके शरीर से लावा फटने लगा. इसके बाद बाबा विश्वनाथ प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिया और तीन वरदान भी दिए.

ये थे तीन वरदानःपंडित दीक्षित ने बताया कि बाबा विश्वनाथ ने प्रसन्न होकर यहां पर सारंग ऋषि से कहा, कि हम तुम्हें तीन वरदान दे रहे हैं.

1. हमारे स्वरूप में तुम्हारी यहां पर पूजा होगी.

2. सावन के महीने में जो यहां पर 1 दिन दर्शन करेगा. उसे मेरे दर्शन करने के पूरे साल भर का फल प्राप्त होगा.

3. जो भी व्यक्ति सच्चे मन से कुछ मांगेगा. उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी.

मंदिर में भगवान शिव से पहले होती है सांरग ऋषि की पूजा

भगवान बुद्ध ने दिया था उपदेशःश्रद्धालु राघवेंद्र मिश्रा ने बताया कि वह बाबा का प्रतिदिन दर्शन-पूजन करते हैं. मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ सावन भर यहीं पर अपने साले के साथ विराजते हैं. उनके साले का नाम सारंग ऋषि है. यह अनोखा मंदिर है. यहां पर एक साथ दो शिवलिंग हैं. पहले सारंग ऋषि की पूजा होती है, फिर बाबा विश्वनाथ की होती है. पूरे सावनभर में लोग दूर-दूर से दर्शन करने के लिए आते हैं. कहा जाता है कि मंदिर के 50 मीटर की लगभग दूरी पर ज्ञान प्राप्त होने के बाद भगवान बुद्ध ने यहीं पर अपने पांच शिष्यों को उपदेश भी दिया था.

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Last Updated : Jul 21, 2023, 2:16 PM IST

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