वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी अपनी परंपराओं के कारण भी विश्व में प्रसिद्ध है. यहां पर हर एक छोटे पर्व को श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है. ऐसे में हम बात करें रामनगर के विश्व प्रसिद्ध रामलीला कि तो, यह रामलीला लगभग 165 वर्ष से निरंतर चली आ रही है. यह रामलीला केवल एक रंगमंच नहीं, बल्कि बनारस के लोगों की आस्था और परंपरा भी है.
1835 में शुरू हुई यह रामलीला
1835 से शुरू होकर लगभग 165 वर्षों का समय तय करने वाली रामलीला आज भी उतनी नवीन है, जितना आज से 165 वर्ष पहले थी. अनंत चतुर्दशी से प्रारंभ होकर पूरे 21 दिनों तक चलने वाली यह रामलीला कार्तिक पूर्णिमा के दिन समाप्त होती है.
आरती देखने आए हजारों लोग
शनिवार को भगवान राम का राज्याभिषेक किया गया, उसके साथ ही प्रात: काल में आरती हुई. यह आरती देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग मौजूद रहे. शनिवार देर शाम रामनगर दुर्ग को दीपावली की तरह सजाया गया और जब वहां से प्रभु श्री राम, माता सीता, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, भरत, राम भक्त हनुमान के साथ हाथी पर सवार होकर निकले तो मानों भगवान शिव की नगरी काशी आज अयोध्या बन गई.
2 महीने पहले से ही दी जाती है ट्रेनिंग
रामलीला में आज भी साउंड और लाइट का प्रयोग नहीं होता और यह 4 कोस की दूरी में संपन्न होती है. 21 दिनों तक चलने वाली इस विश्व प्रसिद्ध रामलीला में प्रतिभाग करने वाले कलाकारों को 2 महीने पहले से ही ट्रेनिंग दी जाती है. पीढ़ियों से चली आ रही यह अनोखी परंपरा आज भी काशीराज परिवार द्वारा जीवित रखा गया है.
जब काशी अयोध्या बन जाती
रामायणी निर्मल मिश्रा ने बताया यह रामलीला लगभग 250 वर्ष पुरानी है. परंपरागत रूप से यह रामलीला आज तक चली आ रही है. उन्होनें बताया कि भगवान श्री राम राज्याभिषेक होने के बाद अपने नगर का भ्रमण करने के लिए निकलते हैं. आज का दिन इतना विशेष होता है कि भगवान विश्वनाथ की नगरी काशी आज अयोध्या बन जाती है.