वाराणसी: भारत के लिए 2 अक्टूबर का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है. आज ही के दिन भारत माता के दो महान सपूतों का जयंती है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश को 'जय जवान जय किसान' का नारा देने वाले काशी के लाल एवं भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का. जिले के रामनगर में लाल बहादुर शास्त्री का वह पुराना मकान है, जहां पर पूर्व पीएम रहते थे. इसे संग्रहालय के रूप में विकसित किया गया है. उनकी यादों को समेट कर रखा गया है. आज के जनप्रतिनिधियों को लाल बहादुर शास्त्री से बहुत कुछ सीखना चाहिए. एक प्रधानमंत्री होने के बावजूद भी वह अपने पैतृक आवास का निर्माण विशाल आवास के रूप में नहीं करवा पाए थे. यही उनकी सादगी का सबसे बड़ा उदाहरण होगा.
मुख्यमंत्री ने किया था उद्घाटन
संस्कृति मंत्रालय ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री की मिट्टी के घर को म्यूजियम रूप में तब्दील करा दिया है. सितंबर 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल राम नाईक ने इसका उद्घाटन किया. जय जवान जय किसान का नारा देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री के पैतृक आवास पर तैयार स्मृति भवन उनके जीवन का परिचय दे रहा है. संग्रहालय के पहले कमरे में चीन और पाकिस्तान युद्ध की दुर्लभ तस्वीरें लगाई गई हैं. शास्त्री जी की रसोई और बैठक को भी उसी समय का लुक देने का प्रयास किया गया है. 150 से अधिक शास्त्री जी की विभिन्न तस्वीरें लगाई गई हैं.
शास्त्री जी का संक्षिप्त जीवन परिचय
2 अक्टूबर 1904 को लाल बहादुर शास्त्री का जन्म मुगलसराय में हुआ था. घर में सबसे छोटे होने के कारण उन्हें नन्हे के नाम से बुलाया जाता था. शास्त्री जी के पिता का नाम मुंशी प्रसाद श्रीवास्तव और माता का नाम दुलारी था. शास्त्री जी की पत्नी का नाम ललिता देवी था. देश के दूसरे प्रधानमंत्री ने जिले के काशी विद्यापीठ से संस्कृत की पढ़ाई करके निकले और तब से उन्हें शास्त्री की उपाधि दी गई. उसके बाद उन्होंने अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिया. शास्त्री जी का विवाह 1928 में ललिता शास्त्री से हुआ था. उनकी दो बच्चियां और चार बेटे थे. मात्र 16 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और गांधीजी के आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. भारत की आजादी के बाद 1951 में दिल्ली आए और केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का काम संभाला. उन्होंने रेलमंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृह मंत्री समेत कई मंत्री पद संभाले. 1964 में शास्त्री जी देश के प्रधानमंत्री बने 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ. पाकिस्तान से युद्ध के दौरान देश के अन्न की कमी हो गई. देश भुखमरी की समस्या से गुजरने लगा. उस संकटकाल में लाल बहादुर शास्त्री ने अपना वेतन लेना बंद कर दिया. देश के लोगों से लाल बहादुर शास्त्री ने अपील की वह हफ्ते में एक दिन व्रत रखें. 11 जनवरी 1966 को देश का एक ईमानदार सिपाही हम सब को छोड़ कर चला गया.