उन्नाव:उन्नाव की एक ऐसी विधानसभा जो मशहूर शायर व स्वतंत्रता सेनानी मौलाना हसरत मोहानी के नाम पर है. वहीं, आजादी के बाद से अब तक यहां 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, लेकिन कभी भी इस सीट से सपा को कामयाबी नहीं मिली है. इस बार समाजवादी पार्टी ने डॉ. आंचल वर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया है. अब देखना यह होगा कि क्या इस बार इस सीट से समाजवादी पार्टी का खाता खुलता है या नहीं. प्रदेश के चुनावी दंगल में राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने मजबूत कैंडिडेट पर दाव लगा रही है. प्रदेश की सत्ता में कई बार सत्ता के सिंहासन पर सपा काबिज हुई, लेकिन उन्नाव की मोहान सीट पर सपा कभी भी जीत दर्ज नहीं कर सकी है.
उन्नाव में चौथे चरण में 23 फरवरी को मतदान होना है. इस सीट से कांग्रेस ने मधु रावत को मैदान में उतारा है. मधु रावत के पति मुनेश्वर पुराने कांग्रेसी नेता हैं. इस बार प्रियंका गांधी ने 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' के तहत उन्नाव की मोहन सीट से मधु रावत को पार्टी का प्रत्याशी बनाया है. वहीं, भाजपा ने अपने मौजूदा विधायक बृजेश रावत पर ही भरोसा जताया है. बृजेश रावत पेशे से शिक्षक हैं. अगर समाजवादी पार्टी की बात करें तो इस बार पार्टी ने एक पढ़े-लिखे प्रत्याशी डॉ. आंचल वर्मा को चुनावी मैदान में उतारा है. आंचल वर्मा के पिता बनारस के अजगरा से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से विधायक कैलाश सोनकर हैं. वहीं, बसपा ने सेवक लाल को प्रत्याशी बनाया गया है. सेवक लाल पूर्व बसपा विधायक राधेलाल के चचेरे भाई हैं. इनकी पत्नी सोना रावत हसनगंज से दो बार ब्लॉक प्रमुख रह चुकी हैं और सेवक लाल खुद कस्टम विभाग से सेवानिवृत्त हुए हैं.
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बात अगर मोहान विधानसभा के इतिहास की करें तो आजादी के बाद से अब तक हुए 17 विधानसभा चुनावों में सपा का खाता नहीं खुला है. यहां के मतदाताओं ने कांग्रेस, भाजपा, बसपा, कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा जनता पार्टी के प्रत्याशियों को भी मौका दिया. सबसे पहले साल 1951 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की. इसके बाद 1957 व 1962 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के प्रत्याशी जीते. 1967 में जनता ने एक बार फिर कांग्रेस पर भरोसा जताया और 1969 व 1974 में फिर से दो बार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को यहां जीत मिली.
इधर, 1977 में यहां की जनता ने चंद्रपाल के चेहरे पर जनता पार्टी को मौका दिया तो 1980 में भिक्खालाल को फिर से कम्युनिस्ट पार्टी से जीत मिली और 1985 में बद्री प्रसाद ने कांग्रेस से जीत हासिल की. इसके बाद इन पार्टियों का रुतबा कम हुआ और भाजपा के मस्तराम ने लगातार दो बार 1989 और 1991 में यहां से जीत दर्ज की. साल 1993 में जनता ने पहली बार बसपा के प्रत्याशी रामखेलावन को जीत दिलाई. लेकिन 1996 के चुनाव में भाजपा ने फिर से पलटी मारी और लगातार दो बार 1996 और 2002 में भाजपा से मस्तराम विधायक बने. 2007 में जनता का रुख एक बार फिर से बदला और बसपा के राधेलाल रावत ने जीत दर्ज की, जो कि लगातार दूसरी बार 2012 में भी विधायक बने. जबकि 2017 के चुनाव में भाजपा ने ब्रजेश रावत को मैदान में उतारा और ब्रजेश रावत ने जीत दर्ज की.