उन्नाव: कहते हैं दिवाली पटाखों और रोशनी का त्योहार है, लेकिन इस दिन लक्ष्मी-गणेश के पूजन का भी विशेष महत्व है. हालांकि गणेश-लक्ष्मी की प्रतिमा को तैयार करने में एक कुम्हार बड़ी मेहनत करनी पड़ती है. कुम्हार बड़े ही प्यार से लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा को तैयार करता है. ताकि उसके भी घर में खुशियों की दिवाली हो, लेकिन असल में मिट्टी को आकार देकर भगवान की मूरत बनाने वाले उसी कुम्हार को दो वक्त की रोटी के लिए मशक्कत करनी पड़ती है.
पटाखों की आवाज के बीच मे इन कुम्हारों की सिसकियां शायद किसी को नहीं सुनाई पड़ती हैं. भगवान की मूर्ति बनाने में की गई मेहनत का पैसा भी उस कुम्हार को नहीं मिलता और वही मूर्ति जब बाजारों में आती है तो ऊंचे दामों में बिकती है. हैरानी की बात तो यह है कि सरकार द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं का लाभ भी इन्हें नहीं मिल पाता है, क्योंकि बैंक कर्मियों की मांगें ये पूरी नहीं कर पाते हैं.
दिवाली के पर्व पर गणेश-लक्ष्मी का पूजन किया जाता है. इस समय बाजारों में गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां भी सज गई हैं. एक मूर्ति बनाने में कुम्हार को काफी मेहनत करनी पड़ती है. इतनी मेहनत के बाद भी मिट्टी को आकार देकर मूर्ति बनाने वाले कुम्हार के हाथ फिर भी खाली रहते हैं. जिले के शैलेन्द्र प्रजापति का पूरा परिवार मिट्टी की मूर्ति बनाने का काम करता है, लेकिन इससे जीविका चलना भी अब कठिन हो गया है.
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