उन्नाव: शहर से लगभग 60 किलोमीटर दूर जबरेला गांव में शिक्षा की एक नई इबारत लिखी जा रही है. बेटियों का यह अनोखा गुरुकुल गांव की तंग गलियों से होते हुए सई नदी के ठीक किनारे पर संचालित हो रहा है. इसे केंद्र या प्रदेश सरकार ने नहीं बल्कि एक दंपति अनीश नाथ और असिता नाथ ने शुरू की है. इस दंपति ने गरीब परिवार की बेटियों के भविष्य को संवारने के लिए दिल्ली में लाखों के पैकेज की नौकरी, अपनी सारी सुख सुविधाओं का त्याग कर दिया. ये लोग बेटियों को किताबी ज्ञान के साथ ही खेती के तरीके बताकर आने वाले समय के लिए हाथों में हुनर का हथियार दे रहे हैं.
गरीब मां-बाप की बच्चियों को दे रहे मुफ्त शिक्षा. बेटियों के अभिभावकों का साथ मिलने से दंपति का विश्वास अब काफी मजबूत हो चुका है. यही नहीं 45 बेटियों के गुरुकुल में दंपत्ति की अपनी दो बेटियां भी पढ़ाई के साथ ही खेती का हुनर भी सीख रही हैं. इस गुरुकुल की खासियत है कि यहां केवल बेटियों को निःशुल्क शिक्षित किया जा रहा है, जो आर्थिक तंगी से स्कूल पहुंचने में असमर्थ थीं.
ग्रामीण सीख रहे खेती के गुर
दंपति ने गरीब परिवार के बेटियों को शिक्षित करने का लक्ष्य निर्धारित कर उन्नाव के असोहा ब्लॉक के जबरेला गांव में परिजनों व दोस्तों की मदद से 2 एकड़ जमीन खरीदी जिस पर पेड़ों की छांव तैयार करने के साथ ही ग्रामीणों को वैज्ञानिक खेती के गुर सिखा कर आर्थिक मजबूत बनाने की तरफ कदम बढ़ाया. कुछ ही दिनों में गांधीवादी विचारधारा वाले अनीश नाथ गांव के अलावा क्षेत्र में किसानों के दोस्त ही नहीं बल्कि उनके हर सुख-दुख का साथी बन गए. इस बीच 2016 में दंपत्ति ने गरीब परिवार की बेटियों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाकर उस पर काम शुरू किया और 'द गुड हार्वेस्ट स्कूल' की फार्म हाउस में ही आधारशिला रखी. इस स्कूल में केवल बेटियों को पढ़ाने की व्यवस्था की गई वह भी पूरी तरीके से निःशुल्क. वहीं दंपत्ति ने बेटियों को किताबी पढ़ाई के साथ ही खेती करने के तरीके को बताने की एक नई पहल की.
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पूरे क्षेत्र में चर्चा का केंद्र बना है स्कूल
यहां 4 साल से 8 साल की उम्र की बेटियां कक्षा 1 से 5 की पढ़ाई के साथ-साथ खेती करने का तरीका सीखकर भविष्य में आत्मनिर्भर बनने की ओर हर दिन एक कदम आगे बढ़ रही हैं. जो काम सरकारें नहीं कर पा रही हैं उस काम को दंपति अपने मजबूत इरादे व दृढ़ इच्छाशक्ति के बलबूते पूरा करने को लगातार आगे बढ़ रहे हैं. बता दें कि अनीश नाथ छात्राओं को सुबह 8:00 बजे अपनी कार से घर से लेकर स्कूल पहुंचते हैं उसके बाद शाम 3:00 बजे स्कूल में छुट्टी कर छात्राओं को पूरी जिम्मेदारी के साथ उनके घर पहुंचाने के बाद अपना काम निपटाते हैं. दंपति की यह पहल पूरे क्षेत्र में चर्चा का केंद्र बनी हुई है.
जीरो बजट की खेती पर कर रहे फोकस
सादा जीवन उच्च विचार के मूल मंत्र को जीवन में साकार करने वाले अनीश नाथ को प्रकृति व पर्यावरण से काफी लगाव है. जिसके लिए उन्होंने लग्जरी जीवन से किनारा करके खेती करने का मन बनाया और 2013 में असोहा के जबरेला गांव में फार्महाउस बनाकर अपने सपनों को साकार करने की तरफ कदम बढ़ाए. अनीश नाथ जीरो बजट की खेती पर फोकस कर रहे हैं. वह स्कूल में पढ़ने वाली बेटियों के साथ-साथ उनके माता-पिता को भी वैज्ञानिक खेती की बारीकियों को बताकर मौसमी खेती करने को जागरूक कर रहे हैं. यही नहीं स्कूल में एक हाईटेक पुस्तकालय भी बना है, जिसमें बच्चे ही नहीं टीचर भी ज्ञान की पाठशाला लगाते हैं.
ईटीवी भारत से बातचीत में अनीश नाथ ने कहा...
ईटीवी से बात करते हुए स्कूल के फाउंडर अनीश नाथ ने कहा कि मेरा मानना है कि जब हम विकास की बात करते हैं तो सिर्फ सीमेंट से बने हुए घर को विकास समझते हैं. हमें यह भी सोचना है कि हम अपनी खुशी में विकास कर रहे हैं या नहीं. मुझे गांव से जुड़कर ज्यादा खुशी मिली. उन्होंने कहा कि मेरी नजरों में यही विकास है. हमें लगा कि जब हम बच्चों को एग्रीकल्चर से जोड़ेंगे तो कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन उनका समाधान भी निकल कर आएगा. जैसे कि फूड क्राइसिस, माइग्रेशन की समस्या को खेती के द्वारा दूर कर सकते हैं. ऐसे में किसानों को अपने खेत भी नहीं बेचने पड़ेंगे. जब हम गांव की तरफ आए तब हमने देखा कि लोग बेटियों को घर पर रोककर लड़कों को स्कूल भेज रहे हैं. यह बड़े दुख की बात है लेकिन कहीं ना कहीं उनकी हालत हम समझ सकते हैं क्योंकि कहीं ना कहीं पैसे की दिक्कत सामने आती है या सुरक्षा की जिसके लिए हम लोगों ने गरीब परिवार की बच्चियों को निःशुल्क पढ़ाने का फैसला लिया.
ईटीवी भारत से बातचीत में असिता नाथ ने क्या कहा
वहीं इस पूरे स्कूल में अनीस नाथ का हाथ बंटा रहीं उनकी पत्नी असिता नाथ का कहना है कि मेरे पति ने फैसला लिया कि हम दिल्ली छोड़कर लखनऊ में परिवार के साथ रहेंगे. 2013 में हमने असोहा के जबरेला में कृषि योग्य भूमि खरीदी और एग्रीकल्चर पर काम शुरू किया. स्कूल खोलने का आईडिया हमें 3 साल बाद 2016 में आया. उन्होंने आगे बताया कि गांव में रहकर सुबह उठकर चिड़ियों को सुन सकते हैं और नदी किनारे बैठ सकते हैं जो बहुत अच्छा लगता है. आज की शिक्षा व्यवस्था पर अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि हमें सोचने की जरूरत है कि एजुकेशन है. केवल एग्जाम पास करने और डिग्री हासिल कर लेना एजुकेशन नहीं है. आपकी सोच को बदलना चाहिए, अगर एजुकेशन आपको अच्छा इंसान नहीं बना रही है और आपकी सोच नहीं बदल रही है तो मेरे हिसाब से एजुकेशन बेकार है. हम शिक्षा के साथ ही बेटियों को हुनरमंद बना रहे हैं.