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बुरे वक्त का 'सहारा' अब बन गया 'संघर्ष' का कारण

सुलतानपुर में लगातार बढ़ रही ई-रिक्शों की तादात से रिक्शा चालकों की दिहाड़ी भी नहीं निकल रही है. लॉकडाउन में बेरोजगार हुए लोगों ने बड़ी संख्या में ई-रिक्शा संचालन का कार्य शुरू किया, जबकि कोरोना की वजह से लोग भी घरों से कम निकल रहे हैं. यही कारण है कि सवारियां न मिलने से रिक्शा चालक मुनाफा नहीं कमा पा रहे.

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रिक्शा चालकों का नहीं निकल पा रहा मेहनताना.

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Published : Dec 31, 2020, 11:20 AM IST

सुलतानपुर: लॉकडाउन के दौरान नौकरी से हाथ धो चुके श्रमिक घर तो लौट आए. दो वक्त की रोटी के लिए अपना पारंपरिक काम छोड़कर लोगों ने नए व्यवसाय और कामों में अपना भाग्य आजमाया. कई लोगों ने ई-रिक्शा के जरिए परिवार के भरण पोषण के लिए घर रखी पूंजी लगा दी. कोरोना के डर और सरकार की गाइडलाइन की वजह से लोग घरों से बाहर कम ही निकले. ऐसे में सड़कों पर ई-रिक्शों की बढ़ती तादाद और सवारियां न मिलना चालकों के लिए परेशानी लेकर आया है. चौराहे के अलावा गली कूचे में ई-रिक्शों की लंबी कतारें देखी जा रही हैं, जिसकी वजह से मुनाफा कम हो गया है. ऐसे में इन परिवारों के आगे रोजी-रोटी को लेकर बड़ी चुनौतियां हैं.

रिक्शा चालकों का नहीं निकल पा रहा मेहनताना.
परदेस से हारा, घर में भी नहीं मिल रहा सहारालॉकडाउन में हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र राज्य से बड़े पैमाने पर श्रमिक सुलतानपुर आए थे. तकनीकी रूप से दक्ष न होने वाले बेरोजगारों के लिए ई-रिक्शा एक बड़ा सहारा बना था, लेकिन वर्तमान में बड़ी संख्या में ई-रिक्शा सड़क पर हैं. ऐसे में उनके बीच संघर्ष शुरू हो गया है. चालक बोले घाटे का पेशा बना रिक्शाकृष्णा चालक सूर्यनारायण कहते हैं कि लॉकडाउन से पहले दिन भर में करीब 900 रुपये का धंधा हो जाता था, लेकिन अब रिक्शों की तादाद काफी बढ़ गई है. इसकी वजह से रोजाना 400-500 से ज्यादा की आमदनी नहीं हो पाती है. शहर से सटे कुत्तूपुर गांव निवासी दिव्यांग रिक्शा चालक राजेंद्र एक हाथ से रिक्शा चलाते हैं. सवारियां न मिलने दिन भर में रिक्शा मालिक को 300 रुपये किराया देने के बात महज सौ-डेढ़ सौ रुपये ही बचते हैं. कभी-कभी वह भी नहीं मिलते. ऐसी परिस्थिति में परिवार चलाना मुसीबतों भरा होता जा रहा है.230 ई-रिक्शा की हुई बढ़ोतरीजनवरी 2020 से अब तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो 230 ई-रिक्शा चालक सामान्य वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष बढ़ोतरी के साथ दर्ज किए गए हैं, जिनका पंजीयन संभागीय परिवहन विभाग ने किया गया है. इनमें ई-रिक्शा और माल ढोने वाले भार वाहन शामिल हैं. 2014 से 2020 के बीच के आंकड़े पर नजर डालें तो 2,272 रिक्शों का पंजीयन अब तक किया गया है. फाइनेंस में दौड़ाए जा रहे श्रमिकई-रिक्शा एजेंसी संचालक ओमप्रकाश पांडेय कहते हैं कि लोन मिलने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. कभी मैनेजमेंट के लोग नहीं मिलते हैं तो कभी अन्य कर्मचारी बहुत परेशान करते हैं. लोन स्वीकृत कराने में रिक्शा चालकों को दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है. ई-रिक्शा एजेंसी के संचालक ने भ्रष्टाचार की ओर भी इशारा किया.

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