सुलतानपुर:माटी से रचनाएं उकेरने वाले कामगीर प्रतिमाओं को स्वरूप देकर बेहद सुंदर और सजीव बनाते हैं. दावा है कि माटी प्रतिमाएं बनाने के मामले में कोलकाता के बाद यूपी का सुलतानपुर जिला दूसरे स्थान पर है. प्रत्येक वर्ष कोलकाता के कारीगर सुलतानपुर आकर सुंदर और बड़ी मूर्तियों को आकार देते थे, लेकिन इस साल कोरोना वायरस के चलते कोलकाता के कारीगर सुलतानपुर नहीं पहुंचे. ऐसे में मूर्ति रचनाकारों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहराता जा रहा है.
कोरोना की वजह से ऐतिहासिक दुर्गा पूजा महोत्सव पर संकट. सुलतानपुर के कारीगरों की मानें तो वो कोलकाता के कारीगरों को रोजगार देते थे, जिससे दोनों परिवारों की रोजी-रोटी चलती थी. इस बार दुर्गा पूजा महोत्सव के आयोजन पर ग्रहण लगा हुआ है, जिससे 15 से 20 फीट की दुर्गा प्रतिमाओं की जगह महज तीन से पांच फीट की मूर्तियां तैयार की जा रही हैं. 17 अक्टूबर से दुर्गापूजा महोत्सव शुरू हो रहा है, लेकिन कोई खास तैयारी होती नहीं दिख रही है.
1959 में शुरू हुई थी दुर्गा पूजा
सुलतानपुर जिले में 1959 में ऐतिहासिक दुर्गा पूजा महोत्सव की शुरुआत हुई थी. चौक घंटाघर निवासी भिखारी लाल सोनी ने इसका शुभारंभ किया था. बताया जा रहा है कि उन दिनों चुनिंदा मूर्तियां लगती थीं. दशहरे से शुरू होने वाला महोत्सव पूर्णिमा तक चलता था, लेकिन इस साल कोविड-19 की वजह से सभी बड़े आयोजनों पर ग्रहण लगा हुआ है. केंद्रीय पूजा समिति के अनुसार इस बार घरों तक ही दुर्गा पूजा महोत्सव सीमित रहेगा.
कारोबार न होने से भुखमरी की कगार पर पहुंचे
कारीगर विनोद कहते हैं कि मूर्तियों का कारोबार न होने से उनका परिवार भुखमरी की कगार पर पहुंच गया है. इस बार बंगाली कारीगर नहीं आए हैं, जिससे बड़ी मूर्तियां नहीं तैयार की गईं. इसलिए छोटी-छोटी प्रतिमाएं बनाकर कारोबार किया जा रहा है. वहीं केंद्रीय पूजा समिति की मानें तो वर्ष 2019 में 895 दुर्गा प्रतिमाएं पूरे जिले भर में स्थापित की गईं थी, जिसमें नगर क्षेत्र में 200 शामिल थीं. पश्चिम बंगाल के आरके पाल समेत कई कारीगर यहां आते थे। दो से तीन माह प्रवास करते थे. चार से पांच करोड़ का खर्च दुर्गा पूजा महोत्सव में आता था. लगभग 10 दिन तक चलने वाले कार्यक्रम में भंडारे का आयोजन, चिकित्सकों के करीब 25 स्टॉल, 36 घंटे विसर्जन यात्रा समेत अन्य चीजें दर्शनीय एवं शोभा का केंद्र होती थीं.