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सोनभद्र: मां शीतला के दर्शन मात्र से होती हैं भक्तों की मुरादें पूरी - maa sheetala

यूपी के सोनभद्र के रॉबर्ट्सगंज में स्थित मां शीतला मंदिर भक्तजनों के आस्था और विश्वास का केंद्र है. मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से इस मंदिर में दर्शन-पूजन करते हैं, उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है.

मां शीतला करती हैं भक्तों की मनोकामना पूरी.

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Published : Oct 4, 2019, 10:52 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:13 PM IST

सोनभद्र:विंध्य पर्वत पर स्थित सोनभद्र जनपद शिव और शक्ति की उपासना का प्रमुख केंद्र रहा है. इस पर्वत पर स्थित मां विंध्यवासिनी, मां अष्टभुजा, मां काली का प्राचीन मंदिर स्थित होने के कारण इस क्षेत्र में शक्ति पूजा का प्रचलन प्राचीन काल से है. नवरात्र के महीने में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-आराधना की परंपरा है. आदिवासी क्षेत्र होने के कारण जनपद में नवरात्र में विशेषकर तंत्र साधकों द्वारा तंत्र-मंत्र के माध्यम से लोक कल्याण का कार्य किया जाता है.

मां शीतला करती हैं भक्तों की मनोकामना पूरी.


शीतला माता करती हैं मनोकामना पूर्ण
जनपद सहित विंध्य क्षेत्र में शीतला माता के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा है. इन्हें महारानी देवी भी कहा जाता है. नीम के वृक्ष पर इनका स्थान माना जाता है. चेचक निकलने और नवरात्र के नौ दिन नीम के वृक्ष पर जल, फूल, माला, दीपक आदि चढ़ाया जाता है. शीतला माता की कृपा बनी रहे इसलिए चूना और ऐपन से भरे हाथों के छाप घर की दीवारों, मंदिर की दीवारों पर लगाई जाती है. माता को खटोला, चूड़ी, कंघी और सिंदूर आदि श्रृंगार की वस्तुएं भी चढ़ाई जाती हैं. मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से इस मंदिर में दर्शन-पूजन करते हैं, उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है.


जनपद के मुख्यालय रॉबर्ट्सगंज के मुख्य चौराहे पर स्थित मां शीतला का मंदिर भक्तजनों के आस्था और विश्वास का केंद्र है. आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व वर्तमान मंदिर स्थल पर नीम के पेड़ के नीचे मां शीतला की मूर्ति स्थापित थी. नगर के पूर्व चेयरमैन और व्यापारी भोला सेठ ने मंदिर के लिए अपनी भूमि दान में दी थी. सन 1973 में मंदिर का निर्माण हुआ.

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ऐसे करते हैं मां की पूजा
शारदीय नवरात्र में लोग प्रथम दिवस पर भूमि को साफ कर ऐपन से गोलाकार चौक बनाते हैं. उस पर ताम्र कलश स्थापित करते हैं. उसमें जल भरकर उस पर आम्र पत्र रखकर लाल कपड़े में नारियल को लपेट कर रखते हैं. घट पर रोली से स्वास्तिक का अंकन कर दीपक जलाते हैं. मिट्टी के अन्य पात्रों में भी जौ बोया जाता है और नौ दिन तक श्रद्धा, विश्वास और शुद्धता के साथ मां भगवती का आवाहन करते हैं. विधिवत गंध, अक्षत, पुष्प, दीप, नवोदय, तांबूल और आरती से उनकी पूजा करते हैं.


हर दिन पूजा के स्थान के दीवार पर ऐपन लगाया जाता है. एक वर्गाकार स्थान को ऐपन लगा कर घट के ठीक सामने देवी का स्थान मान लिया जाता है. अष्टमी नवमी के दिन कुंवारी कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर उन्हें भोजन कराया जाता है और उन्हें उपहार भी दिया जाता है. उपहार में मुख्य रूप से खिलौने, फल और रुपये दिए जाते हैं.

Last Updated : Sep 17, 2020, 4:13 PM IST

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